मेवाडके महान राजा : महाराणा प्रताप सिंह
सारिणी
- १. महाराणा प्रतापका परिचय !
- २. महाराणा प्रतापका बचपन !
- ३. महाराणा प्रतापका राज्याभिषेक !
- ४. महाराणा प्रतापकी अपनी मातृभूमिको मुक्त करानेकी अटूट प्रतिज्ञा !
- ५. हल्दीघाटकी लडाई : महाराणा प्रताप, एक महान योद्धा !
- ६. महाराणा प्रतापका कठोर प्रारब्ध
- ७. महाराणा प्रतापकी अंतिम इच्छा
जिनका नाम लेकर दिनका शुभारंभ करे, ऐसे नामोंमें एक हैं, महाराणा प्रताप । उनका नाम उन पराक्रमी राजाओंकी सूचिमें सुवर्णाक्षरोंमें लिखा गया है, जो देश, धर्म, संस्कृति तथा इस देशकी स्वतंत्रताकी रक्षा हेतु जीवनभर जूझते रहे ! उनकी वीरताकी पवित्र स्मृतिको यह विनम्र अभिवादन है ।
मेवाडके महान राजा, महाराणा प्रताप सिंहका नाम कौन नहीं जानता ? भारतके इतिहासमें यह नाम वीरता, पराक्रम, त्याग तथा देशभक्ति जैसी विशेषताओं हेतु निरंतर प्रेरणादाई रहा है । मेवाडके सिसोदिया परिवारमें जन्मे अनेक पराक्रमी योद्धा, जैसे बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा संगको ‘राणा’ यह उपाधि दी गई; अपितु ‘ महाराणा ’ उपाधिसे केवल प्रताप सिंहको सम्मानित किया गया ।
महाराणा प्रताप सिंहके कालमें देहलीपर अकबर बादशाहका शासन था । हिंदू राजाओंकी शक्तिका उपयोग कर दूसरे हिंदू राजाओंको अपने नियंत्रणमें लाना, यह उसकी नीति थी । कई रजपूत राजाओंने अपनी महान परंपरा तथा लडनेकी वृत्ति छोडकर अपनी बहुओं तथा कन्याओंको अकबरके अंत:पूरमें भेजा ताकि उन्हें अकबरसे इनाम तथा मानसम्मान मिलें । अपनी मृत्यूसे पहले उदय सिंगने उनकी सबसे छोटी पत्नीका बेटा जगम्मलको राजा घोषित किया; जबकि प्रताप सिंह जगम्मलसे बडे थे, प्रभु रामचंद्र जैसे अपने छोटे भाईके लिए अपना अधिकार छोडकर मेवाडसे निकल जानेको तैयार थे । किंतु सभी सरदार राजाके निर्णयसे सहमत नहीं हुए । अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमलको सिंहासनका त्याग करना पडेगा । महाराणा प्रताप सिंहने भी सभी सरदार तथा लोगोंकी इच्छाका आदर करते हुए मेवाडकी जनताका नेतृत्व करनेका दायित्व स्वीकार किया ।
महाराणा प्रतापके शत्रुओंने मेवाडको चारों ओरसे घेर लिया था । महाराणा प्रतापके दो भाई, शक्ति सिंह एवं जगमल अकबरसे मिले हुए थे । सबसे बडी समस्या थी आमने- सामने लडने हेतु सेना खडी करना, जिसके लिए बहुत धनकी आवश्यकता थी ।
महाराणा प्रतापकी सारी संदूके खाली थीं, जबकी अकबरके पास बहुत बडी सेना, अत्यधिक संपत्ति तथा और भी सामग्री बडी मात्रामें थी । किंतु महाराणा प्रताप निराश नहीं हुए अथवा कभी भी ऐसा नहीं सोचा कि वे अकबरसे किसी बातमें न्यून(कम) हैं ।
अकबरने महाराणा प्रतापको अपने चंगुलमें लानेका अथक प्रयास किया किंतु सब व्यर्थ सिद्ध हुआ! महाराणा प्रतापके साथ जब कोई समझौता नहीं हुआ, तो अकबर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने युद्ध घोषित किया । महाराणा प्रतापने भी सिद्धताएं आरंभ कर दी । उसने अपनी राजधानी अरवली पहाडके दुर्गम क्षेत्र कुंभलगढमें स्थानांतरित की । महाराणा प्रतापने अपनी सेनामें आदिवासी तथा जंगलोंमें रहनेवालोंको भरती किया । इन लोगोंको युद्धका कोई अनुभव नहीं था, किंतु उसने उन्हें प्रशिक्षित किया । उसने सारे रजपूत सरदारोंको मेवाडके स्वतंत्रताके झंडेके नीचे इकट्ठा होने हेतु आवाहन किया ।
महाराणा प्रतापके २२,००० सैनिक अकबरकी ८०,००० सेनासे हल्दीघाटमें भिडे । महाराणा प्रताप तथा उसके सैनिकोंने युद्धमें बडा पराक्रम दिखाया किंतु उसे पीछे हटना पडा। अकबरकी सेना भी राणा प्रतापकी सेनाको पूर्णरूपसे पराभूत करनेमें असफल रही । महाराणा प्रताप एवं उसका विश्वसनीय घोडा ‘ चेतक ’ इस युद्धमें अमर हो गए । हल्दीघाटके युद्धमें ‘ चेतक ’ गंभीर रुपसे घायल हो गया था; किंतु अपने स्वामीके प्राण बचाने हेतु उसने एक नहरके उस पार लंबी छलांग लगाई । नहरके पार होते ही ‘ चेतक ’ गिर गया और वहीं उसकी मृत्यु हुई । इस प्रकार अपने प्राणोंको संकटमें डालकर उसने राणा प्रतापके प्राण बचाएं । लोहपुरुष महाराणा अपने विश्वसनीय घोडेकी मृत्यूपर एक बच्चेकी तरह फूट-फूटकर रोया । तत्पश्चात जहां चेतकने अंतिम सांस ली थी वहां उसने एक सुंदर उद्यानका निर्माण किया । अकबरने महाराणा प्रतापपर आक्रमण किया किंतु छह महिने युद्धके उपरांत भी अकबर महाराणाको पराभूत न कर सका; तथा वह देहली लौट गया । अंतिम उपायके रूपमें अकबरने एक पराक्रमी योद्धा सरसेनापति जगन्नाथको १५८४ में बहुत बडी सेनाके साथ मेवाडपर भेजा, दो वर्षके अथक प्रयासोंके पश्चात भी वह राणा प्रतापको नहीं पकड सका ।
भामाशाहकी महाराणाके प्रति भक्ति महाराणा प्रतापके वंशजोेंके दरबारमें एक रजपूत सरदार था । राणा प्रताप जिन संकटोंसे मार्गक्रमण रहा था तथा जंगलोंमें भटक रहा था, इससे वह बडा दुखी हुआ । उसने राणा प्रतापको ढेर सारी संपत्ति दी, जिससे वह २५,००० की सेना १२ वर्षतक रख सके । महाराणा प्रतापको बडा आनंद हुआ एवं कृतज्ञता भी लगी ।
आरंभमें महाराणा प्रतापने भामाशाहकी सहायता स्वीकार करनेसे मना किया किंतु उनके बार-बार कहनेपर राणाने संपात्तिका स्वीकार किया । भामाशाहसे धन प्राप्त होनेके पश्चात राणा प्रतापको दूसरे स्रोतसे धन प्राप्त होना आरंभ हुआ । उसने सारा धन अपनी सेनाका विस्तार करनेमें लगाया तथा चितोड छोडकर मेवाडको मुक्त किया ।
७. महाराणा प्रतापकी अंतिम इच्छा
महाराणा प्रतापकी मृत्यु हो रही थी, तब वे घासके बिछौनेपर सोए थे, क्योंकि चितोडको मुक्त करनेकी उनकी प्रतिज्ञा पूरी नहीं हुई थी । अंतिम क्षण उन्होंने अपने बेटे अमर सिंहका हाथ अपने हाथमें लिया तथा चितोडको मुक्त करनेका दायित्व उसे सौंपकर शांतिसे परलोक सिधारे । क्रूर बादशाह अकबरके साथ उनके युद्धकी इतिहासमें कोई तुलना नहीं । जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबरके नियंत्रणमें था, महाराणा प्रतापने मेवाडको बचानेके लिए १२ वर्ष युद्ध किया । अकबरने महाराणाको पराभूत करनेके लिए बहुत प्रयास किए किंतु अंततक वह अपराजित ही रहा । इसके अतिरिक्त उसने राजस्थानका बहुत बडा क्षेत्र मुगलोंसे मुक्त किया । कठिन संकटोंसे जानेके पश्चात भी उसने अपना तथा अपनी मातृभूमिका नाम पराभूत होनेसे बचाया । उनका पूरा जीवन इतना उज्वल था कि स्वतंत्रताका दूसरा नाम ‘ महाराणा प्रताप ’ हो सकता है । उनकी पराक्रमी स्मृतिको हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
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