Sunday, June 25, 2017

Shahjahan Biography History & Biography In Hindi

 Shahjahan Biography History & Biography In Hindi


पूरा नाम  – अल् आजाद अबुल मुजफ्फर शाहब उद-दीन मोहम्मद
जन्म       – ५ जनवरी १५९२
जन्मस्थान – खुर्रम, लाहौर, पाकिस्तान
पिता       – जहाँगीर
माता       – ताज बीबी बिलक़िस मकानी
विवाह     – अरजुमंद बानू बेगम उर्फ मुमताज महल इनके साथ विवाह और भी कन्दाहरी बेग़म अकबराबादी महल, हसीना बेगम, मुति बेगम, कुदसियाँ बेगम, फतेहपुरी महल, सरहिंदी बेगम, श्रीमती मनभाविथी इनके साथ.



सन्तान / Son Of Shahjahan –  पुरहुनार बेगम, जहांआरा बेगम, दारा शिकोह, शाह शुजा, रोशनारा बेगम, औरंग़ज़ेब, मुराद बख्श, गौहरा बेगम।

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शाहजहाँ का इतिहास – History Of Shahjahan


अपने पराक्रमो से आदिलशाह और निजामशाह के प्रस्थापित वर्चस्वो को मु तोड़ जवाब देकर सफलता मिलाने वाला राजा के रूप में शाहजहाँ की पहचान होती है। वैसेही खुदकी रसिकता को जपते हुये कलाकारों के गुणों को प्रोत्साहन देने वाला और ताजमहल जैसी अप्रतिम वास्तु खड़ी करने वाला ये राजा था।

पारसी भाषा, वाड़:मय, इतिहास, वैदिकशास्त्र, राज्यशास्त्र, भूगोल, धर्म, युद्ध और राज्यकारभार की शिक्षा शहाजहान उर्फ राजपुत्र खुर्रम इनको मिली। इ.स. 1612 में अर्जुमंद बानू बेगम उर्फ मुमताज़ महल इनके साथ विवाह हुवा। उनके विवाह का उन्हें राजकारण में बहोत उपयोग हुवा।

शाहजहाँ बहोत पराक्रमी थे। आदिलशहा, कुतुबशहा ये दोनों भी उनके शरण आये। निजामशाह की तरफ से अकेले शहाजी भोसले ने शाहजहाँ से संघर्ष किया। लेकिन शहाजहान के बहोत आक्रमण के वजह से शहाजी भोसले हारकर निजामशाही खतम हुयी। भारत के दुश्मन कम हो जाने के बाद शहाजहान की नजर मध्य आशिया के समरकंद के तरफ गयी। लेकिन 1639-48 इस समय में बहोत खर्चा करके भी वो समरकंद पर जीत हासिल कर नहीं सके।

विजापुर और गोवळ कोंडा इन दो राज्यों को काबू में लेकर उसमे सुन्नी पथो का प्रसार करने के लिये औरंगजेब को चुना गया। पर औरंगजेब ने खुद के भाई की हत्या कर के बिमार हुये शाहजहाँ को कैद खाने में डाल दिया। वही जनवरी 1666 में उनकी दुर्देवी मौत हुयी।

शाहजहाँ का नाम ‘ताजमहल’ इस अप्रतिम कलाकृति के वजह से भी यादो में रहता है। मुमताज़ महल इस अपनी बेगम के यादो में उन्होंने ये वास्तु बनवायी थी। उस समय इस वास्तु को बनवाने के लिये छे करोड़ रुपये खर्च आया।




संगमवर के पत्थरों का इस्तेमाल ही शहाजहान निर्मित इस भव्य ईमारत की खासीयत है। इसके लिये उन्होंने इटालियन Techniques की भी मदत ली। मोती मस्जिद, दिल्ली का लाल किला ये भी उन्होंने बनवाई हुयी वास्तु है। ताजमहल इस सुंदर ख्वाब के तरफ देखते हुये उन्होंने अपनी आखरी सॉस ली।

विजापुर और गोवळ कोंडा इन दो राज्यों को काबू में लेकर उसमे सुन्नी पथो का प्रसार करने के लिये औरंगजेब को चुना गया। पर औरंगजेब ने खुद के भाई की हत्या कर के बिमार हुये शाहजहाँ को कैद खाने में डाल दिया और ख़ुद सन् 1658 में मुग़ल सम्राट बन बैठा। शाहजहाँ 8 वर्ष तक आगरा के क़िले के शाहबुर्ज में क़ैद रहे। उनका अंतिम समय बड़े दु:ख और मानसिक क्लेश में बीता था। अंत में जनवरी, सन् 1666 में उनका देहांत हो गया। उस समय उनकी आयु 74 वर्ष की थी। उसे उनकी प्रिय बेगम के पार्श्व में ताजमहल में ही दफ़नाया गया था।


मुमताज़ महल का इतिहास / Mumtaz Mahal History in Hindi


मुमताज़ महल मुग़ल महारानी और मुग़ल शासक शाहजहाँ की मुख्य पत्नी भी थी. मुमताज की ही याद में उनके पति शाहजहाँ ने आगरा में ताजमहल का निर्माण किया था.
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मुमताज़ महल / Mumtaz Mahal का जन्म अरजुमंद बानू बेगम के नाम से आगरा के एक पर्शियन परीवार में अब्दुल हसन असफ खान की पुत्री के रूप में हुआ था. अरजुमंद बानू का निगाह 10 मई 1613 को 19 साल की आयु में प्रिंस खुर्रम से हुआ जो बाद में मुग़ल शासक शाहजहाँ के नाम से प्रसिद्ध हुए, शाहजहाँ ने बाद में उन्हें “मुमताज़ महल” का भी शीर्षक दिया. 1607 में वह शाहजहाँ की मंगेतर बनी थी, और परीणामतः 1612 में वह उनकी तीसरी पत्नी बनी और शाहजहाँ की सबसे प्यारी पत्नी कहलाने लगी.

शाहजहाँ और मुमताज को चौदह बच्चे थे, जिनमे औरंगजेब, प्रिंस दारा शिकोन भी शामिल है, इसके साथ ही इन चौदह बच्चो में उनकी बेटी महारानी जहानारा बेगम भी शामिल है.

शाहजहाँ को अपनी पत्नी मुमताज़ पर ज्यादा और दुसरी पत्नीयो पर कम प्रेम था. शाहजहाँ ने दुसरी पत्नियो को कम और मुमताज़ को ज्यादा अधिकार दे रखे थे.  शाहजहाँ, मुमताज से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे और वे मुमताज़ को ही अपनी बेगम के रूप में देखना पसंद करते थे.

मुमताज महल ने अपनी मोहब्बत के चलते शाहजहाँ से निगाह किया था. मुमताज की सुंदरता को उनके जीवनभर में कई कवियों, लेखको ने अपनी कविताओ और लेख में निखारा है. शाहजहाँ अपने पुरे मुग़ल साम्राज्य की यात्रा मुमताज़ के साथ ही किया करते थे. शाहजहाँ को मुमताज़ पर इतना भरोसा हो गया था की उन्होंने मुमताज़ को शाही सील, मुहर उजाह के अधिकार भी दे रखे थे.

मुमताज़ ने बाद में बताया भी था की उन्हें कभी किसी प्रकार के राजनैतिक ताकत की कोई चाह थी ही नही. लेकिन फिर भी मुमताज़ पर महारानी नूर जहाँ का काफी प्रभाव पड़ा, मुमताज़ को हमेशा से ही मैदान में होने वाले हाथियों की लड़ाई बहोत पसंद थी.
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मुमताज़ को अपने साम्राज्य की साधारण महिलाओ से मिलना, उनके साथ खेलना और बाते करना भी काफी पसंद था इसीलिए कई बार भी आगरा के गार्डन में भी टहलने जाया करती थी.

10 से भी ज्यादा बार गर्भवती होने के बावजूद मुमताज़ शाहजहाँ के साथ यात्रा पर जाती थी. यात्रा पर जाते समय वह पुरे मुग़ल साम्राज्य का भ्रमण करना पसंद करती थी, जिनमे उन्हें शाहजहाँ की सैन्य शक्ति को देखना काफी पसंद था. उन्हें कुल 14 बच्चे हुए थे, जिनमे से 7 जन्मपूर्व ही मर गये या किशोरावस्था में ही मारे गये.




मुमताज़ महल मृत्यु और ताज महल
मुमताज़ महल / Mumtaz Mahal की मृत्यु 1631 में अपने चौदहवे बच्चे को जन्म देते समय हुई थी. मुमताज़ के शव को उस समय शाहजहाँ के चाचा दानियाल द्वारा तापी नदी के तट पर जैनाबाद गार्डन में दफनाया गया था.

शाहजहाँ को इस बात से काफी दुःख हुआ था, इसका शाहजहाँ के दिल पर काफी परीणाम हुआ. परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु के बाद शाहजहाँ एक वर्ष के लिये शोक मानते हुए एकांत में रहने के लिए चले गये.

उनके शव को दिसम्बर 1631 में निकला गया और सोने से बनी शवपेटी में आगरा के पीछे दफनाया गया. आगरा के ही पीछे यमुना नदी के तट पर एक छोटे घर में  उनके शव को रखा गया था.

शाहजहाँ बुरहानपुर के पीछे ही अपने सैन्य दल के साथ रहने लगे थे. और वाही रहते हुए उन्होंने मुमताज़ की याद में एक विशाल महल बनाने की योजना बनाई. उनके सपने को साकार होने में पुरे 22 साल लगे, मुमताज़ की याद में बने उस महल को “ताजमहल” के नाम से जाना जाता है.



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तब से लेकर आज तक ताजमहल की मोहब्बत की निशानी माना जाता है. और दुनिया भर के लोग मुमताज़ की याद में शाहजहाँ द्वारा बनाये ताजमहल को देखने आते है

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