Thursday, June 8, 2017

तारागढ़ का दुर्ग



तारागढ़ का दुर्ग



19 नवंबर से लेकर 25 नवंबर तक वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाया जा रहा है। इस मौके पर dainikbhaskar.com उन धरोहरों के बारें में बता रहा है जिनकी महत्वता ने उनका नाम इतिहास में दर्ज करा दिया। भारत में ऐसे कई किले, उद्यान और जगह हैं जिन्हें विश्व विरासत में जगह मिली है। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो इस सूची में शामिल होने की क्षमता रखते हैं। आज की कड़ी में हम एक ऐसे किले के बारे में बता रहे हैं जिसे आज तक कोई भेद न सका।

अजमेर.आक्रमण, सुरक्षा और स्थापत्य का अद्भुत नमूना है तारागढ़ का किला। राजस्थान के अजमेर में जाने पर ऐसा लगता है मानो तारागढ़ हमें बुला रहा हो। यह अपने गौरवशाली इतिहास के लिए फेमस है। अजमेर की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला पर स्थित तारागढ़ दुर्ग को सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनके मुंह से निकल पड़ा- ''ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर'' और मुगल बादशाह अकबर ने तो इसकी श्रेष्ठता भांप कर अजमेर को अपने साम्राज्य का सबसे बड़ा सूबा बनाया था। तारागढ़ जिसके भी अधीन रहा, वह दुर्ग के द्वार पर कभी लड़ाई नहीं हारा।

यह किला 1 हजार 885 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर दो वर्ग मील में फैला हुआ है। यह ऊंचाई इतनी ज्यादा है कि दूर-दूर से इस किले का दीदार किया जा सकता है। इसकी बनावट को देख बेहद सुखद अनुभव होता है। इसके चारो तरफ देखें तो एक ओर गहरी घाटी, दूसरी ओर लगातार तीन पर्वत शृंखलाएं, तीसरी ओर सीधी ढलान और चौथी ओर अजमेर शहर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।

क्या है जिब्राल्टर



जिब्राल्टर यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के किनारे स्थित एक स्वशासी ब्रिटिश विदेशी क्षेत्र है। जिब्राल्टर ऐतिहासिक रूप से ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार रहा है और नौसेना का एक आधार है। जिब्राल्टर चट्टानी प्रायद्वीप से घिरा हुआ है। यहां कई प्राकृतिक गुफाएं भी हैं।
यह ऐतिहासिक दुर्ग अजमेर के चौहान राजा अजयराज द्वितीय ने 1033 ई. में बनवाया था। सन् 1505 में मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज ने इस पर अधिकार किया तथा अपनी रानी ताराबाई के नाम से दुर्ग का नाम तारागढ़ रख दिया। तारागढ़ की प्राकृतिक सुरक्षा एवं अनूठे स्थापत्य के कारण ही मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा सूबा बनाया जिसमें उस समय 60 सरकारें व 197 परगने थे। तारागढ़ का स्थापत्य अनूठा है। दुर्ग की विशेषता किले को ढकने वाली वर्तुलाकार दीवार है। ऐसा भारत के किसी भी दुर्ग में नहीं है। इसमें प्रवेश के लिए एक छोटा-सा द्वार है। उसकी बनावट भी ऐसी है कि बाहर से आने वाले दुश्मों को पंक्तिबद्ध करके आसानी से सफाया किया जा सके। मुख्यद्वार को ढकने वाली दीवार में भीतर से गोलियां और तीर चलाने के लिए पचासों सुराख हैं।

100 से ज्यादा युद्धों में जीत का चख चुका है स्वाद



किले के चारों तरफ 14 बुर्ज हैं जिन पर मुगलों ने तोपें जमा की थी। इन्हीं बुर्जों ने तारागढ़ किले को अजेय बना दिया था। इसलिए तारागढ़ जिसके भी अधीन रहा, वह दुर्ग के द्वार पर कभी लड़ाई नहीं हारा। 100 से ज्यादा युद्धों के साक्षी इस दुर्ग का भाग्य मैदानी लड़ाई के निर्णयों के अनुसार ही बदलता रहा। तारागढ़ के चौदह बुर्जों का विशेष महत्व था। नोट:- 'बुर्ज' ऐसी इमारत या ढांचे को कहते हैं जिसकी ऊंचाई उसकी चौड़ाई से काफी अधिक हो। अगर ढांचा ज़्यादा ऊंचा हो तो उसे मीनार (miraret) कहा जाता है, हालांकि साधारण बोलचाल में कभी-कभी 'बुर्ज' और 'मीनार' को पर्यायवाची शब्दों की तरह प्रयोग किया जाता है।

दो किलोमीटर लम्बी है दीवार



बड़े दरवाजे से पूरब की ओर 3 बुर्जें हैं-घूंघट बुर्ज, गुमटी बुर्ज तथा फूटी बुर्ज। घूंघट बुर्ज दूर से दिखाई नहीं देती। बुर्ज की इस प्रकार की संरचना युद्ध नीति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी जाती है। बुर्जों के अलावा दुर्ग का दो किलोमीटर लम्बी दीवार भी इसकी विशेषता है। इस दीवार पर दो घुड़सवार आराम से साथ-साथ घोड़े दौड़ा सकते थे। कहते हैं पहले पूरा शहर इसी परकोटे के भीतर रहता था। तारागढ़ का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 1832 से 1920 के बीच अंग्रेजों ने इसमें व्यापक तोडफ़ोड़ की, जिसके परिणामस्वरूप तोरणद्वार, टूटी-फूटी बुर्जों, मीरान साहब की दरगाह आदि के अलावा आज कुछ भी शेष नहीं है।

यहां के नीम का फल खाने से होती हैं संतान की प्राप्ति!




किले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं। यहां एक मीठे नीम का पेड़ भी है कहा जाता है जिन लोगों को संतान नही होती यदि वो इसका फल खा लें तो उनकी यह तमन्ना पूरी हो जाती है।

शाहजहां के बेटों में यहीं पर हुआ था युद्ध



शाहजहां के बेटों दाराशिकोह और औरंगजेब के बीच सन् 1659 में यहीं युद्ध हुआ जिसमें दाराशिकोह मारा गया और औरंगजेब हिन्दुस्तान का बादशाह बना।


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