Sunday, January 26, 2020
Tuesday, January 21, 2020
Tanaji malusare history in hindi | तानाजी का इतिहास
Tanaji history in hindi | तानाजी का इतिहास
तानाजी मालुसरे फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन भी कर रही है। फिल्म को लेकर इतिहासकारों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है लेकिन बावजूद इसके फिल्म का कलेक्शन लगातार बढ़ता हुआ ही दिख रहा है। करीब 4000 हजार स्क्रीन्स पर रिलीज हुई इस फिल्म में अजय देवगन छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति सूबेदार और घनिष्ठ मित्र तानाजी मालुसरे (Subedar Tanaji Malusare) के किरदार में नजर आ रहे हैं।
ओम राउत द्वारा निर्देशित यह फिल्म 17 वीं शताब्दी के मराठा योद्धा और छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति सूबेदार तानाजी मालुसरे की कहानी पर आधारित है। मालुसरे को खासतौर पर कोंधाना किला (सिंहगढ़) (1670) का किला फतह करने के लिए जाना जाता है। तानाजी ने शिवाजी के आदेश पर मुगलों के खिलाफ सिंहगढ़ का युद्ध लड़ा और इस किले पर फतह हासिल की लेकिन ये करते करते उनकी मौत हो गई। रणनीतिक रूप से यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण किला था। जिसपर मुगल अपना अधिपत्य चाहते थे। तानाजी मालुसरे का जन्म 1600 ईस्वी में गोडोली, जवाली तालुका, सतारा जिला, महाराष्ट्र में हुआ था।
जानिए क्या थी सिंहगढ़ की लड़ाई और तानाजी मालुसरे को क्यों याद किया जाता है?
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। शिवाजी के पास बड़ी संख्या में किले थे जिनकी मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे। लेकिन धीरे धीरे मुगलों ने करीब 23 किले अपने अधीन कर लिए। पुरंदर के किले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से 22 जून 1665 ई. में पुरंदर की संधि की। जिस कारण शिवाजी महाराज को कोंधाना किला मुगलों को देना पड़ा। यह किला 1665 में राजपूत कमांडर जय सिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगलों के अधीन आ गया। शिवाजी अपने इस किले को वापस पाना चाहते थे।
1665 की संधि के बाद जब शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गए तो वहां धोखे से उन्हें बंदी बना लिया गया जैसे तैसे शिवाजी आगरा से निकलकर महाराष्ट्र पहुंचे और उन्होंने पुंरदर संधि को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ मुगलों के अधीन हुए किलों को फतह करने का सिलसिला। क्योंकि किला मराठाओं के लिए सम्मान की बात थी। खास तौर पर ये किला इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि कहा जाता था कि ये किला जिस किसी के पास भी होगा उसका 'पूना' पर अधिकार होगा।
ऐसे में शिवाजी महाराज ने अपने घनिष्ठ मित्र और सेनापति तानाजी मालुसरे को इसे फतह करने के लिए भेजा। 70,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस किले का एक द्वार पुणे और दूसरा द्वार कल्याण की ओर खुलता है। तानाजी अपने भाई सूर्या जी को साथ लेकर करीब 300 सेना के साथ इस किले को फतह करने चल दिए। किले की दीवार इतनी सीधी सपाट थी कि उसपर आसानी से चढ़ना संभव नहीं था। इतना ही नहीं इस किले की रक्षा करने के लिए किले में करीब 5000 मुगल सेना तैनात की गई थी।
किले के नीचे पहुंचने के बाद तानाजी योजना के तहत रस्सी की मदद से इस किले में दाखिल होने में सफल हुए। बारी-बारी से तानाजी की पूरी सेना इस किले में दाखिल हो गई और युद्ध छिड़ गया। इस बीच उदयभान राठौड़ (किले की रखवाली करने वाले राजपूत सेनापति) को जब इसका पता चला तो उन्होंने तानाजी पर हमला किया। इस हमले में तानाजी की ढाल टूट गई। लड़ाई में तानाजी, उदयभान द्वारा मारे गए और वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन अंत में मराठाओं ने इस किले पर फतह हासिल की और मराठा ध्वज फहरा दिया गया।
किले पर फतह हासिल करने के बावजूद शिवाजी महाराज को अपने प्रिय सेनापति को खोने का दुख उम्रभर रहा। तानाजी की मृत्यु की खबर सुन शिवाजी ने कहा था- 'गढ़ आला, पन सिंह गेला' यानी किला तो जीत लिया लेकिन अपना शेर खो दिया। शिवाजी तानाजी को शेर कहा करते थे।
तानाजी मालुसरे (अंग्रेज़ी: Tanaji Malusare) शिवाजी महाराज के सेनापति थे, जो अपनी वीरता के कारण सिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। शिवाजी उनको सिंह ही कहा करते थे। 1670 ई. में कोढाणा क़िले (सिंहगढ़) को जीतने में तानाजी ने वीरगति पायी थी। जब शिवाजी सिंहगढ़ को जीतने निकले थे, तब तानाजी अपने पुत्र के विवाह में व्यस्त थे, किन्तु शिवाजी महाराज का समाचार मिलते ही वह विवाह आदि छोड़ कर युद्ध में चले गये थे।
वीर निष्ठावान सरदार
तानाजी मालुसरे शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान सरदार थे। उनके पुत्र के विवाह की तैयारी हो रही थी। चारों ओर उल्लास का वातावरण था। तभी शिवाजी महाराज का संदेश उन्हें मिला- "माता जीजाबाई ने प्रतिज्ञा की है कि जब तक कोण्डाणा दुर्ग पर मुसलमानों के हरे झंडे को हटा कर भगवा ध्वज नहीं फहराया जाता, तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी। तुम्हें सेना लेकर इस दुर्ग पर आक्रमण करना है और अपने अधिकार में लेकर भगवा ध्वज फहराना है।"
स्वामी का संदेश पाकर तानाजी ने सबको आदेश दिया- विवाह के बाजे बजाना बन्द करो, युद्ध के बाजे बजाओ।" अनेक लोगों ने तानाजी से कहा- "अरे, पुत्र का विवाह तो हो जाने दो, फिर शिवाजी महाराज के आदेश का पालन कर लेना।" परन्तु, तानाजी ने ऊँची आवाज में कहा- "नहीं, पहले कोण्डाणा दुर्ग का विवाह होगा, बाद में पुत्र का विवाह। यदि मैं जीवित रहा तो युद्ध से लौटकर विवाह का प्रबंध करूँगा। यदि मैं युद्ध में काम आया तो शिवाजी महाराज हमारे पुत्र का विवाह करेंगे।" बस, युद्ध निश्चित हो गया।
Sunday, July 23, 2017
Somnath Temple History In Hindi | सोमनाथ मंदिर का इतिहास
Somnath Temple History In Hindi | सोमनाथ मंदिर का इतिहास
सोमनाथ मंदिर / Somnath Temple भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है| भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है| यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है| बहोत सी प्राचीन कथाओ के आधार पर इस स्थान को बहोत पवित्र माना जाता है| सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है|
सोमनाथ मंदिर शाश्वत तीर्थस्थान के नाम से जाना जाता है| पिछली बार नवंबर 1947 में इसकी मरम्मत करवाई गयी थी, उस समय वल्लभभाई पटेल जूनागढ़ दौरे पर आये थे तभी इसकी मरम्मत का निर्णय लिया गया था| पटेल की मृत्यु के बाद कनैयालाल मानकलाल मुंशी के हाथो इसकी मरम्मत का कार्य पूरा किया गया था, जो उस समय भारत सरकार के ही मंत्री थे|
यह मंदिर रोज़ सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है| यहाँ रोज़ तीन आरतियाँ होती है, सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और श्याम 7 बजे| कहा जाता है की इसी मंदिर के पास भालका नाम की जगह है जहा भगवान क्रिष्ण ने धरती पर अपनी लीला समाप्त की थी|
ज्योतिर्लिंग / Jyotirlinga –
सोमनाथ में पाये जाने वाले शिवलिंग को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है| इस शिवलिंग के यहाँ स्थापित होने की बहोत सी पौराणिक कथाएँ है| इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गयी है जहाँ भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे| वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंग को माना जाता है लेकिन इनमे से 12 ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है|
शिवजी के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ में है और बाकि वाराणसी, रामेश्वरम, द्वारका इत्यादि जगहों पर है|
सोमनाथ में पाये जाने वाले शिवलिंग को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है| इस शिवलिंग के यहाँ स्थापित होने की बहोत सी पौराणिक कथाएँ है| इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गयी है जहाँ भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे| वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंग को माना जाता है लेकिन इनमे से 12 ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है|
शिवजी के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ में है और बाकि वाराणसी, रामेश्वरम, द्वारका इत्यादि जगहों पर है|
इतिहास / History
प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है|
कहा जाता है की चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था| परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया| इसके शहर प्रभास का अर्थ रौनक से है और साथ ही प्राचीन परम्पराओ के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है|
प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है|
कहा जाता है की चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था| परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया| इसके शहर प्रभास का अर्थ रौनक से है और साथ ही प्राचीन परम्पराओ के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है|
सोमनाथ मंदिर का इतिहास / Somnath Temple History
जे.गॉर्डोन मेल्टन के पारंपरिक दस्तावेजो के अनुसार सोमनाथ में बने पहले शिव मंदिर को बहोत ही पुराने समय में बनाया गया था| और दूसरे मंदिर को वल्लभी के राजा ने 649 CE में बनाया था| कहा जाता है की सिंध के अरब गवर्नर अल-जुनैद ने 725 CE में इसका विनाश किया था| इसके बाद 815 CE में गुर्जर-प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया था, इसे लाल पत्थरो से बनवाया गया था|
लेकिन अल-जुनैद द्वारा सोमनाथ पर किये गए आक्रमण का कोई इतिहासिक गवाह नही है| जबकि नागभट्ट द्वितीय जरूर इस तीर्थस्थान के दर्शन करने सौराष्ट्र आये थे| कहा जाता है की सोलंकी राजा मूलराज ने 997 CE में पहले मंदिर का निर्माण करवाया होंगा| जबकि कुछ इतिहासकारो का कहना है की सोलंकी राज मूलराज ने कुछ पुराने मंदिरो का पुनर्निर्माण करवाया था|
कहा जाता है की कई बार शासको ने इसे क्षति भी पहोचाई थी लेकिन फिर कुछ राजाओ ने मिलकर इस इतिहासिक पवित्र स्थान की मरम्मत भी करवाई थी|
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया| मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया| इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्माने इसे राष्ट्र को समर्पित किया| 1948 में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था| इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी|
यह जूनागढ रियासत का मुख्य नगर था| लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया| मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा| मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है| उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है| मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है| सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है|
सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है| यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है| चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है| इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है| इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है| इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है|
सोमनाथ मंदिर की रोचक बाते – Interesting Facts about Somnath Temple
1. 1665 में मुग़ल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया था| लेकिन बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था| बाद में पुणे के पेशवा, नागपुर के राजा भोसले, कोल्हापुर के छत्रपति भोंसले, रानी अहिल्याबाई होलकर और ग्वालियर के श्रीमंत पाटिलबूआ शिंदे के सामूहिक सहयोग से 1783 में इस मंदिर की मरम्मत की गयी थी|
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया| मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया| इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्माने इसे राष्ट्र को समर्पित किया| 1948 में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था| इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी|
यह जूनागढ रियासत का मुख्य नगर था| लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया| मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा| मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है| उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है| मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है| सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है|
सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है| यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है| चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है| इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है| इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है| इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है|
सोमनाथ मंदिर की रोचक बाते – Interesting Facts about Somnath Temple
1. 1665 में मुग़ल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया था| लेकिन बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था| बाद में पुणे के पेशवा, नागपुर के राजा भोसले, कोल्हापुर के छत्रपति भोंसले, रानी अहिल्याबाई होलकर और ग्वालियर के श्रीमंत पाटिलबूआ शिंदे के सामूहिक सहयोग से 1783 में इस मंदिर की मरम्मत की गयी थी|
2. 1296 में अलाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने मंदिर को क्षतिग्रस्त कर गिरा दिया था| लेकिन अंत में गुजरात के राजा करण ने इसका बचाव किया था|
3. 1024 में मंदिर को अफगान शासक ने क्षति पहोचकर गिरा दिया था| लेकिन फिर परमार राजा भोज और सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 से 1042 के बिच इसका पुनर्निर्माण किया था| कहा जाता है को लकडियो की सहायता से उनकी मंदिर का पुनर्निर्माण किया था लेकिन बाद में कुमारपाल ने इसे बदलकर पत्थरो का बनवाया था|
4. मंदिर की चोटी पर 37 फ़ीट लंबा एक खम्बा है जो दिन में तीन बार बदलता है| वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1950 में शुरू हुआ था| मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठान का कार्य भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने किया था|
5. सोमनाथ मंदिर आज देश में चर्चा का विषय बन चूका है| अब जो हिन्दू धर्म के लोग नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिये विशेष परमिशन लेनी होगी| अब तक मिली कंकरी के अनुसार जो हिन्दू नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिए ट्रस्ट को मान्य कारण बताना होगा|
कच्छ का रण
कच्छ का रन तथा महान कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह लगभग 23,300 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूचाल के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभड़ आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है। सिकंदर महान् के समय यह नौगम्य झील था। उत्तरी रन, जो लगभग 257 कि॰मी॰ में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,178 वर्ग कि॰मी॰ है। मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है। सन् 1819 ई. के भूकंप में उत्तरी रन का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं।
4. मंदिर की चोटी पर 37 फ़ीट लंबा एक खम्बा है जो दिन में तीन बार बदलता है| वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1950 में शुरू हुआ था| मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठान का कार्य भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने किया था|
5. सोमनाथ मंदिर आज देश में चर्चा का विषय बन चूका है| अब जो हिन्दू धर्म के लोग नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिये विशेष परमिशन लेनी होगी| अब तक मिली कंकरी के अनुसार जो हिन्दू नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिए ट्रस्ट को मान्य कारण बताना होगा|
कच्छ का रण
कच्छ का रन तथा महान कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह लगभग 23,300 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूचाल के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभड़ आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है। सिकंदर महान् के समय यह नौगम्य झील था। उत्तरी रन, जो लगभग 257 कि॰मी॰ में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,178 वर्ग कि॰मी॰ है। मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है। सन् 1819 ई. के भूकंप में उत्तरी रन का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं।
नाम "रण" हिन्दी शब्द से आता है (रण) अर्थ "रेगिस्तान" है।
कच्छ के रन की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है। 9 अप्रैल 1965 को पाकिस्तान ने अचानक आक्रमण करके इसके एक भाग पर कब्जा कर लिया। भारतीय सैनिकों ने अपना क्षेत्र वापस लेने के लिए कार्रवाई की तो युद्ध छिड़ गया। लेकिन ब्रिटेनके हस्तक्षेप से युद्ध विराम हुआ और मामला फैसले के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय (19 फ़रवरी 1968) के अनुसार कच्छ के रन का लगभग एक तिहाई भाग पाकिस्तान को वापस मिल गया।
Gujarat history in hindi मेरे गुजरात की कहानी
मेरे गुजरात की कहानी
जब मैं 16 वर्ष की थी, तब मेरी ही उम्र का एक लड़का पटना से मेरे गृहनगर बड़ोदा (गुजरात) आया। शहर को देखकर वह चकाचौंध था। बिजली की निर्बाध आपूर्ति, सड़क की बेहतरीन दशा, रात में भी बिना किसी डर के अकेली दोपहिया वाहन चलाती महिलाएं। गरबा के दौरान, रात भर, आकर्षक बैकलेस चोली में महिलाएं घूम रही थीं। उसे अपनी आंखों पर सहसा विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने उसका राज्य (बिहार) नहीं देखा था, इसलिए उसके उत्साह की वजह मेरी समझ में नहीं आ रही।
ऐसे ही, एक बार मेरे पिता अपने व्यापार के सिलसिले में पंजाब गए। ट्रेन में उन्हें एक पंजाबी व्यापारी मिला। दोनों के बीच कारोबारी फायदे को लेकर बातचीत शुरू हुई। जब मेरे पिता ने बिजली की कीमत बताई, तो उस व्यापारी ने चौंककर पूछा, 'क्या आपको बिजली की कीमत चुकानी पड़ती है, तो फिर आप मुनाफा कैसे कमाते हैं?' मेरे पिता यह सुनकर ठीक उसी तरह उलझन में पड़ गए, जिस तरह पटना के उस लड़के की बातें सुनकर मैं।
ऐसे ही, एक बार मेरे पिता अपने व्यापार के सिलसिले में पंजाब गए। ट्रेन में उन्हें एक पंजाबी व्यापारी मिला। दोनों के बीच कारोबारी फायदे को लेकर बातचीत शुरू हुई। जब मेरे पिता ने बिजली की कीमत बताई, तो उस व्यापारी ने चौंककर पूछा, 'क्या आपको बिजली की कीमत चुकानी पड़ती है, तो फिर आप मुनाफा कैसे कमाते हैं?' मेरे पिता यह सुनकर ठीक उसी तरह उलझन में पड़ गए, जिस तरह पटना के उस लड़के की बातें सुनकर मैं।
ये आज से 25 वर्ष पहले 1989 की घटनाएं हैं। तब से आज तक, पहली बार गुजरात आया कोई भी व्यक्ति यहां का वर्णन कुछ उसी चकित अंदाज में करता है। वास्तव में, बिजली, सड़क और बढ़ते उद्योगों के अलावा भी गुजरात में काफी कुछ था (और है भी), जिसे सराहा जा सकता है। गुजरात हमेशा से एक अग्रणी राज्य रहा है।
स्कूली जीवन के दौरान छोटी कक्षा में हमें रोज एक गिलास ठंडा दूध मिलता था, जिसे पीना हम सिर्फ इसलिए पसंद करते थे, क्योंकि उसे रंगीन गिलासों में परोसा जाता था। आज कुछ राज्यों में लड़कियों के लिए चलाई जा रही 'मुफ्त साइकिल' योजना का राग मीडिया खूब अलापता है, लेकिन गुजरात में बालिका शिक्षा लंबे समय से मुफ्त रही है। 1992-95 के दौरान मैंने स्नातक किया। और मेरी फीस थी, महज 36 रुपये सालाना।
गांवों की तस्वीर भी ज्यादा बुरी नहीं थी। गिर के जंगलों और पीरोटन द्वीप में 'नेचर एजुकेशन कैंप' और नर्मदा के किनारे होने वाली सालाना स्कूल पिकनिक के दौरान ही हमें ग्रामीण गुजरात को देखने का मौका मिलता। बड़े होने पर पता चला कि वे पिकनिक स्पॉट (गरुड़ेश्वर, झाड़ेश्वर, उत्कंठेश्वर आदि) गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों का हिस्सा हैं, जो राज्य का अपेक्षाकृत 'पिछड़ा इलाका' है। हालांकि, तब जिन ग्रामीण सड़कों से हम गुजरते थे, उनकी दशा मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ के उन राज्य या राष्ट्रीय राजमार्गों से बेहतर थीं, जिन्हें देखने का मौका मुझे 2005-07 में मिला। विगत 14 वर्षों में अपने काम के सिलसिले में देश के तकरीबन सभी प्रमुख राज्यों में फील्डवर्क के बाद मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं कि पहली बार गुजरात देखने वालों की आंखों में भरी चकाचौंध की वजह क्या है।
जिस गुजराती माहौल में मैं पली-बढ़ी, उसकी खास बात है, वहां का सुरक्षित माहौल, जो आजादी का एहसास देता है। 1995-97 के दौरान जब मैं दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए कर रही थी, मुझे याद है कि राजधानी एक्सप्रेस से मैं अलसुबह तीन बजे बड़ोदा पहुंचती थी। फिर मैं ऑटो रिक्शा करके अकेली घर पहुंचती थी। दिल्ली में आज भी मेरे जैसी सामाजिक पृष्ठभूमि की महिला के लिए यह एक सपना है। अपनी क्षेत्रीय और धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता पर बड़ोदा को गर्व रहा है। स्कूल में मेरे साथ ईसाई, हिंदू, पारसी, मुस्लिम, सिख और सिंधी- लगभग सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते थे। ओनम, पतेती और पोंगल के वह आमंत्रण मुझे आज भी याद आते हैं। 2007 में जब संजय दत्त पर आतंकवादियों से जुड़ाव के आरोप लगे, तो मेरी सात वर्ष की भांजी ने बेहद भोलेपन से मुझसे पूछा, 'संजय दत्त आतंकवादी कैसे हो सकता है? वह मुसलमान थोड़े है।' समझने वाली बात है कि सांप्रदायिक भावनाएं गुजरात के लिए नई नहीं हैं, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर मेरा इनसे सामना उम्र बढ़ने के साथ ही हुआ।
आंकड़े भी 90 और 2000 के दशक में गुजरात की उपलब्धियों की कहानी बयां करते हैं। 90 के दशक में सामाजिक-आर्थिक सूचकांकों में गुजरात का औसत न सिर्फ राष्ट्रीय औसत से ज्यादा था, बल्कि यह पहले दस राज्यों में शामिल था। 2000 के दशक में गुजरात अपनी उपलब्धियों को मुश्किल से ही बरकरार रख सका। अतः गुजरात एक दिन में नहीं बना। इसके पीछे जो कड़ी मेहनत है, उसकी शुरुआत तो मोदी युग से कम से कम दस वर्ष पहले ही हो चुकी थी।
मैं यह नहीं कहती कि गुजरात की शुरुआती उपलब्धियों का श्रेय 80 और 90 के दशक में रही कांग्रेस सरकार को जाना चाहिए। गौरतलब है कि गुजरात की उपलब्धियां हैं, तो कुछ बदनामियां भी हैं। 90 के दशक में 'सी एम' शब्द को लेकर एक चुटकुला प्रचलित था, जिसमें इसका उच्चारण 'चीफ मिनिस्टर' के बजाय 'करोड़-मेकिंग' कहा गया। इसके पीछे धारणा यह थी कि मुख्यमंत्री हर रोज एक करोड़ रुपये बटोरते थे। आज भी यहां संपत्ति के ज्यादातर कारोबार में काला धन शामिल होता है।
भाजपा की जनसंपर्क कंपनियों के चश्मे से देखें, तो गुजरात "ईश्वर का देश" है। उत्तर भारत के मैदानों के निवासी की आंखों से देखें, तो गुजरात की कई उपलब्धियां हैं, लेकिन वे मोदी-युग से पहले की हैं। दक्षिण भारत के नजरिये से देखें, तो गुजरात आर्थिक रूप से संपन्न, लेकिन सामाजिक पैमानों पर थोडा पिछड़ा दिखने लगता है।
गुजरात के डुमस बीच पर रूहों का बसेरा, रात को आती हैं आवाज़ें
गुजरात के समुद्री तट पर स्थित दमस बीच जिसे लोग डुमस बीच भी कहते हैं, हमेशा चर्चा में रहता है। खास तौर से पर्यटकों के लिये। क्योंकि ज्यादा तर पर्यटक इस बीच का लुत्फ उठाना चाहते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों की बातें सुनने के बाद अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इस बीच पर रूहों का बसेरा है। सूर्य अस्त होने के बाद अगर आप इस बीच पर गये, तो आपको चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देंगीडुमस बीच के बारे में हम इसलिये भी चर्चा करने जा रहे हैं, क्योंकि पिछले कुछ दिनों पर इंटरनेट पर भी यह चर्चा का विषय बन चुका है। कोई इसके बारे में अपने अनुभव शेयर करना चाहता है तो कोई इसके बारे में विस्तृत रूप से जानना चाहता है।डुमस बीच का इतिहास अरब सागर से लगा हुआ यह बीच सूरत से 21 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां की रेत सफेद नहीं बल्कि काली होती है। इस बीच का इतिहास किसी राजा या रानी की प्रेम कथा से नहीं जुड़ा है, लेकिन हां लोगों का मानना है कि सदियों पहले यहां पर भूत-प्रेतों ने अपना गढ़ बना लिया और इसीलिये यहां की रेत काली हो गई। हां एक बात जरूर है कि इस बीच से लगा हुआ शव दाह ग्रह है। यहां पर लाशें जलायी जाती हैं। लोगों का मनना है कि जिन लोगों को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है, या जिनकी असमय मृत्यु हो जाती है, उनकी रूह इस बीच पर बसेरा कर लेती है। क्या कहते हैा स्थानीय लोग सूरत के भटेना में रहने वाले विश्वास पटेल से हमने फोन पर इस जगह के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "मैं दो बार ही डुमस बीच गया। वहां अपने दोस्तों के साथ रात को थोड़ा समय भी बिताया। पहली बार रात बितायी तो मुझे ऐसा लगा कि कोई वहां समुद्र किनारे बैठा रो रहा है। सिसकने की आवाज़ सुनायी दी। चूंकि हमने पहले से इस जगह के बारे में सुन रखा था, तो हम तुरंत वहां से वापस चले आये।" विश्वास पटेल ने आगे बताया, "लेकिन हां करीब आठ महीने बाद दूसरी बार गया, तो मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा कि वहां भूत-प्रेत हैं। वैसे सच बताऊं लोगों ने इस जगह के बारे में कुछ ज्यादा ही अंधविश्वास फैल रखा है। इंसान न चाहते हुए भी डर जाये।" साफ्टवेयर इंजीनियर आकाश शर्मा ने कोरा पर इस जगह के बारे में लिखा कि वो वहां पर कई बार गये, लेकिन कभी कोई भूत प्रेत की आवाज नहीं सुनायी दी। सूरत के रहने वाले फोटोग्राफर निशांत के जारीवाला लिखते हैं, "मैं इस जगह पर 500 से ज्यादा बार जा चुका हूं, मुझे कभी कोई भूत नहीं मिला।" करन शाह ने कोरा पर लिखा, "मैं अपने दोस्तों के साथ रात को बीच पर क्रिकेट खेलता हूं, मुझे आज तक कोई भूत नहीं दिखाई दिया।"
Sunday, July 16, 2017
लक्ष्मी निवास मित्तल की जीवनी / Lakshmi Mittal Biography In Hindi
लक्ष्मी निवास मित्तल की जीवनी / Lakshmi Mittal Biography In Hindi
जन्म – 2 सितम्बर 1950
जन्मस्थान – राजगढ़, राजस्थान
पिता – मोहन मित्तल
माता – गीता मित्तल
विवाह – उषा मित्तल ( Lakshmi Mittal Wife )
लक्ष्मी निवास मित्तल की जीवनी / Lakshmi Mittal Biography In Hindi
लक्ष्मी निवास मित्तल / Lakshmi Mittal यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले भारतीय मूल के दुनिया के सबसे बड़े स्टील उत्पादक है. साथ ही वे अपनी कंपनी आर्सेलर मित्तल के सीईओ और चेयरमैन भी है. उनकी यह दुनिया दुनिया की सबसे बड़ी स्टील का उत्पादन करने वाली कंपनी है. मित्तल की अपनी कंपनी आर्सेलर मित्तल में 34% और क्वीन पार्क रेंजर F.C. में 34% की हिस्सेदारी है.
सन 2007 में लक्ष्मी मित्तल / Lakshmi Mittal युरोपे का सबसे अमीर हिंदु और एशियाई माना गया. सन 2002 में, ब्रिटेन के आठवे नंबर के सबसे अमीर व्यक्ति होने के बावजूद उन्होंने ब्रिटेन की नागरिकता नही ली. सन 2011 में फ़ोर्ब्स ने उन्हें विश्व का छठा सबसे अमीर व्यक्ति माना था पर मार्च 2015 में वे बहोत निचे गिरकर 82 वे नंबर पर आ गये. लेकिन फिर भी सन 2013 में फ़ोर्ब्स ने उन्हें दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूचि में शामिल किया था. इसके साथ ही वे विश्व के 57 वे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति और 2015 में उन्हें फ़ोर्ब्स ने सबसे ताकतवर लोगो की सूचि में शामिल किया था. उनकी बेटी वनिशा मित्तल का विवाह दुनिया में अब तक का दूसरा सबसे महंगा विवाह माना जाता है.
सन 2008 से लेकर वे गोल्डमैन सैक्स के ‘बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर’ एवं सदस्य भी है. वे विश्व स्टील संगठन के कार्यकारी समिति, भारतीय प्रधानमंत्री के वैश्विक सलाहकार समिति, कजाकिस्तान के फॉरेन इन्वेस्टमेंट कौंसिल, वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समिति और मोजाम्बिक के राष्ट्रपति के अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी है. वे अमेरिका स्थित केल्लोग्स स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट के सलाहकार बोर्ड के सदस्य और क्लीवलैंड क्लिनिक के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी भी है.
सन 2006 में, द सन्डे टाइम्स ने उन्हें “बिज़नस पर्सन ऑफ़ द इयर” और टाइम्स पत्रिका ने उन्हें “इंटरनेशनल न्यूज़मेकर ऑफ़ द इयर 2006” का सम्मान दिया. सन 2007 में टाइम पत्रिका ने उन्हें ‘दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों’ की सूचि में रखा.
लक्ष्मी मित्तल / Lakshmi Mittal ने सन 1957 से 1964 तक श्री दौलतराम नोपानी विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की. उन्होंने कोलकाता के सेंट जेविअर्स कॉलेज से वाणिज्य में बी.कॉम में ग्रेजुएट की उपाधि प्राप्त की. उनके पिता मोहल लाल मित्तल का इस्पात का व्यवसाय था- निप्पनडेन इस्पात. उद्योग जगत में पहला कदम भारत सरकार द्वारा स्टील के उत्पादन पर नियंत्रण के वजह से 26 वर्षीय लक्ष्मी निवास मित्तल ने सन 1976 में अपना पहला स्टील कारखाना ‘पी.टी. इस्पात इंडो’ इंडोनेशिया के सिद्देअर्जो में स्थापित किया. 1990 के दशक तक भारत में मित्तल परिवार के परिसंपत्ति के रूप में नागपुर में शीट स्टील की एक कोल्ड रोलिंग मिल और पुणे के पास एक एलाय स्टील संयंत्र था. आज के समय में मित्तल परिवार का व्यापार (जिसमे मुंबई के पास एक विशाल इंटीग्रेटेड स्टील संयंत्र शामिल है) विनोद और प्रमोद मित्तल चलाते है, पर लक्ष्मी का इन व्यवसायों से कोई लेना देना नही.
लक्ष्मी मित्तल की व्यक्तिगत जीवन / Lakshmi Mittal Lifestyle In Hindi :
लक्ष्मी मित्तल / Lakshmi Mittal का जन्म 2 सितम्बर 1950 को हुआ. वे 18-19 सालो में केंसिंग्टन पैलेस गार्डन में रहते थे जिसे उन्होंने 2004 में फार्मूला वन के मालक से लगभग 128 मिलियन US डॉलर में ख़रीदा था- उस समय वह विश्व का सबसे महंगा घर माना गया था. ताज महल को जीन संगमरमर के पत्थरो से सजाया गया है उन्ही पत्थरो से उनके पैलेस को भी सजाया गया है. उनकी संपत्ति और सबसे महंगे घर को देखते हुए उनके घर को “ताज मित्तल” भी कहा जाता था. उनके पैलेस में 12 बेडरूम्स, 1 अंदरूनी पूल, तुर्किश बाथरूम और 20 कारो के लिये पार्किंग की सुविधा थी. मित्तल लाक्टो-वेजिटेरियन है.
मित्तल ने अपने केंसिंग्टन पैलेस गार्डन के पास ही लगभग 500 मिलियन £ की संपत्ति खरीद ली. उनकी संपत्ति को “करोडपतियो की कतार” भी कहा जाता है.
दिसम्बर 2013 को उनके भतीजी की शादी हुई, जिसका उन्होंने 3 दिनों का एक भव्य समारोह आयोजित किया कहा जाता है की उस समारोह का खर्चा लगभग प्रति मिनट का 50 पौंड था.
दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल के सीईओ लक्ष्मी नारायण मित्तल उर्फ़ लक्ष्मी निवास मित्तल की गिनती दुनिया के सबसे अमीर लोगो में होती है. लक्ष्मी निवास मित्तल ब्रिटेन में रहते है लेकिन नागरिकता उन्होंने अभी भी भारत की बनाये रखी है. अपने व्यापार के अलावा लक्ष्मी मित्तल दुनिया के सबसे महंगे मकानों में रहने के लिये प्रसिद्ध है.
रतन टाटा की प्रेरणादायक जीवनी /Ratan Tata Biography In Hindi
जन्म – 28 दिसंबर 1937
जन्मस्थान – मुम्बई
पिता – नवल टाटा
माता – सोनू टाटा
रतन टाटा की प्रेरणादायक जीवनी /Ratan Tata Biography In Hindi
प्रारंभिक जीवन / Early Life Ratan Tata In Hindi
रतन टाटा / Ratan Tata , नवल टाटा के पुत्र थे, जिसे नवाजबाई टाटा ने अपने पति की मृत्यु के बाद दत्तक ले लिया था. रतन टाटा के माता-पिता नवल और सोनू 1940 के मध्य में अलग हूए. अलग होते समय रतन 10 साल के और उनके छोटे भाई सिर्फ 7 साल के ही थे. उन्हें और उनके छोटे भाई, दोनों को उनकी बड़ी माँ नवाईबाई टाटा ने बड़ा किया था. कैंपियन स्कूल, मुम्बई से ही रतन टाटा ने स्कूल जाना शुरू किया और कैथेड्रल में ही अपनी माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और जॉन केनौन स्कूल में दाखिल हुए. वही वास्तुकला में उन्होंने अपनी B.Sc की शिक्षा पूरी की.
साथ ही कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से 1962 में संचारात्मक इंजीनियरिंग और 1975 में हार्वर्ड बिज़नस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का अभ्यास किया. टाटा अल्फा सिग्मा फाई बन्धुत्वता के सदस्य भी है.
रतन टाटा के बारे में जानकारी / About Ratan Tata In Hindi
रतन टाटा / Ratan Tata एक परोपकारी व्यक्ति है, जिनके 65% से ज्यादा शेयर चैरिटेबल संस्थाओ में निवेश किये गए है. उनके जीवन का मुख्य उद्देश् भारतीयो के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है और साथ ही भारत में मानवता का विकास करना है. रतन टाटा का ऐसा मानना है की परोपकारियों को अलग नजरिये से देखा जाना चाहिए, पहले परोपकारी अपनी संस्थाओ और अस्पतालों का विकास करते थे जबकि अब उन्हें देश का विकास करने की जरुरत है.
रतन टाटा की व्यक्तिगत पृष्टभूमि / Ratan Tata Life History In Hindi
रतन टाटा का जन्म नवल टाटा और सोनू कमिसरियात के बेटे के रूप में हुआ और उन्हें एक छोटा भाई जिमी टाटा भी है. तलाक के बाद रतन टाटा के पिता ने साइमन दुनोएर से दूसरी शादी कर ली. अपनी दूसरी पत्नी से उन्हें एक और बेटा नोएल टाटा भी हुआ. रतन के पिता सर रतन टाटा के दत्तक लिए हुए बेटे थे. बचपन से ही रतन एन. टाटा का पालनपोषण उद्योगियो के परिवार में हुआ था. वे एक पारसी पादरी परिवार से जुड़े हुए थे. उनका परिवार ब्रिटिश कालीन भारत से ही एक सफल उद्यमी परिवार था इस वजह से रतन टाटा को अपने जीवन में कभी भी आर्थिक परेशानियो का सामना नही करना पड़ा था. रतन का ज्यादातर पालनपोषण उनकी बड़ी माँ नवाजबाई ने किया था.
रतन एन. टाटा एक उच्च शिक्षित उद्योगपति है. उन्होंने USA की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से वास्तुकला की डिग्री प्राप्त कर रखी थी और USA की ही हार्वर्ड बिज़नस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का भी अभ्यास कर रखा था. सन् 1962 में वे अपने पारिवारिक व्यवसाय टाटा ग्रुप में शामिल हुए. रतन एन. टाटा आज अविवाहित पुरुष है उनके रिश्तों को लेकर कई बार खबरे भी आती गयी. लेकिन हम सब के सामने ये सबसे बड़ा प्रश्न है की “रतन एन. टाटा को किसने सफल किया? उनकी सफलता के पीछे कौन है?” मीडिया कई वर्षो से इस बात पर चर्चा करते आई है, ताकि वे रतन एन. टाटा के सफलता के राज को जान सके.
रतन टाटा के करियर की शुरुवात –
रतन एन. टाटा अपना उच्च शिक्षण पुरा करने के बाद भारत वापिस आये और जे.आर.डी टाटा की सलाह पर उन्होंने IBM में जॉब की और 1962 में अपने पारिवारिक टाटा ग्रुप में शामिल हुए, जिसके लिए उन्हें काम के सिलसिले में टाटा स्टील को आगे बढाने के लिये जमशेदपुर भी जाना पडा.
1971 में, उनकी नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स के डायरेक्टर पद पर नियुक्ति की गयी. जिसकी उस समय बहोत बुरी परिस्थिति थी और उन्हें 40% का नुकसान और 2% ग्राहकों के मार्केट शेयर खोने पड़े. लेकिन जैसे ही रतन एन. टाटा उस कंपनी में शामिल हुए उन्होंने कंपनी का ज्यादा मुनाफा करवाया और साथ ही ग्राहक मार्केट शेयर को भी 2% से बढाकर 25% तक ले गए. उस समय मजदूरो की कमी और NELCO की गिरावट को देखते हुए राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था.
जे.आर.डी टाटा ने जल्द ही 1981 में रतन टाटा को अपने उद्योगों का उत्तराधिकारी घोषित किया लेकिन उस समय ज्यादा अनुभवी न होने के कारण बहोत से लोगो ने उत्तराधिकारी बनने पर उनका विरोध किया. लोगो का ऐसा मानना था की वे ज्यादा अनुभवी नही है और ना ही वे इतने विशाल उद्योग जगत को सँभालने के काबिल है. लेकिन टाटा ग्रुप में शामिल होनेके 10 साल बाद, उनकी टाटा ग्रुप के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की गयी. रतन टाटा के अध्यक्ष बनते ही टाटा ग्रुप में नयी उचाईयो को छुआ था, इस से पहले इतिहास में कभी टाटा ग्रुप इतनी उचाईयो पर नही गया था. उनकी अध्यक्षता में टाटा ग्रुप ने अपने कई अहम् प्रोजेक्ट स्थापित किये. और देश ही नही बल्कि विदेशो में भी उ होने टाटा ग्रुप को नई पहचान दिलवाई.
देश में सफल रूप से उद्योग करने के बाद टाटा ने विदेशो में भी अपने उद्योग का विकास करने की ठानी, और विदेश में भी जैगुआर रोवर और क्रूस की जमीन हथिया कर वहा अपनी जागीरदारी विकसित की. जिस से टाटा ग्रुप को पूरी दुनिया में पहचान मिली और इसका पूरा श्रेय रतन एन. टाटा को ही दिया गया. भारत में उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पाद टाटा इंडिका और नैनो के नाम से जाने जाते है. आज टाटा ग्रुप का 65% मुनाफा विदेशो से आता है. 1990 में उदारीकरण के बाद टाटा ग्रुप ने विशाल सफलता हासिल की, और फिर से इसका श्रेय भी रतन एन. टाटा को ही दिया गया.
रतन टाटा के बेस्ट इंस्पायरिंग थॉट्स
Quote 1: I don’t believe in taking right decisions. I take decisions and then make them right.
In Hindi: मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं करता। मैं निर्णय लेता हूँ और फिर उन्हें सही साबित कर देता हूँ।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 2: If you want to walk fast, walk alone. But if you want to walk far, walk together.
In Hindi: अगर आप तेजी से चलना चाहते हैं तो अकेले चलिए। लेकिन अगर आप दूर तक चलना चाहते हैं तो साथ मिलकर चलिए।
Quote 3: Ups and downs in life are very important to keep us going, because a straight line even in an ECG means we are not alive
In Hindi: आगे बढ़ने के लिए जीवन में उतर-चढ़ाव बहुत ज़रूरी हैं, क्योंकि ईसीजी में भी एक सीधी लाइन का मतलब होता है कि हम जिंदा नहीं हैं।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 4: Power and wealth are not two of my main stakes.
In Hindi: सत्ता और धन मेरे दो प्रमुख सिद्धांत नहीं हैं।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 5: I have two or three cars that I like, but today, Ferrari would be the best car I have driven in terms of being an impressive car.
In Hindi: मेरे पास दो या तीन कारें हैं जो मुझे पसंद हैं, लेकिन आज, प्रभावशाली होने के मामले फेरारी सबसे अच्छी कार है जो मैंने चलाई है।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 6: I will certainly not join politics. I would like to be remembered as a clean businessman who has not partaken in any twists and turns beneath the surface, and one who has been reasonably successful.
In Hindi: मैं निश्चित रूप से राजनीति में नहीं शामिल होऊंगा। मैं एक साफ़-सुथरे बिजनेसमैन के तौर पे याद किया जाना पसंद करूँगा, जिसने सतह के नीचे की गतिविधियों में हिस्सा ना लिया हो, और जो काफी सफल रहा हो।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 7: If it stands the test of public scrutiny, do it… if it doesn’t stand the test of public scrutiny then don’t do it.
In Hindi: यदि ये सार्वजानिक जांच की कसौटी पर खरा उतरता है तो इसे करो…अगर ये ये सार्वजानिक जांच की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो इसे मत करो।
Ratan Tata रतन टाटा
Quote 8: The day I am not able to fly will be a sad day for me.
In Hindi: जिस दिन मैं उड़ान नहीं भर पाऊंगा, वो मेरे लिए एक दुखद दिन होगा।
रतन टाटा की उपलब्धिया–
रतन टाटा ने भारतीय उद्योगों की जेष्ठ हैसियत वाले इंसान के रूप में सेवा की. जैसे की वे प्रधानमंत्री व्यापार और उद्योग समिति के सदस्य भी है. और साथ ही एशिया के RAND सेंटर के वे सलाहकार समिति में भी शामिल है.
रतन टाटा भारतीय एड्स कार्यक्रम समिति के सक्रीय कार्यकर्ता भी है. भारत में इसे रोकने की हर संभव कोशिश वे करते रहे है.
देश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी हमें रतन टाटा का काफी नाम दिखाई देता है. वे मित्सुबिशी को-ऑपरेशन की अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समिति के भी सदस्य है और इसीके साथ वे अमेरिकन अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप जे.पी. मॉर्गन चेस एंड बुज़ एलन हमिल्टो में भी शामिल है. उनकी प्रसिद्धि को देखते हुए हम यह कह सकते है की रतन टाटा एक बहुप्रचलित शख्सियत है.
अब तक निचे दिए गए पुरस्कार रतन टाटा को उनकी महान उपलब्धियो के लिए दिए गये-
- येल की तरफ से नेतृत्व करने वाले सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति का पुरस्कार.
- सिंगापूर की नागरिकता का सम्मान.
- इंडो-इसरायली चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स द्वारा सन् 2010 में “बिजनेसमैन ऑफ़ दि डिकेड” का सम्मान.
- टाटा परिवार के देश की प्रगति में योगदान हेतु परोपकार का कार्नेगी मैडल दिया गया.
- सन् 2008 में, रतन टाटा को भारत सरकार ने भारत के नागरिकत्व का सबसे बड़ा पुरस्कार पद्म भूषण दिया गया.
रतन टाटा भारत के सबसे सफल और प्रसिद्ध उघमियों में गीने जाते है, उनका स्वभाव शर्मीला है और वे दुनिया की झूठी चमक दमक में विश्वास नहीं करते. वे सालों से मुम्बई के कोलाबा जिले में एक किताबों से भरे हुए फ्लैट में अकेले रहते है. रतन टाटा उच्च आदर्शों वाले व्यक्ति है. वे मानते हैं कि व्यापार का अर्थ सिर्फ मुनाफा कामाना नहीं बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी समझना है और व्यापार में सामाजिक मूल्यों का भी सामावेश होना चाहिए.
रतन टाटा का हमेशा से ही यह मानना था की-
जीवन में आगे बढ़ते रहनेके लिए उतार-चढ़ाव का बड़ा ही महत्व है. यहां तक कि ई.सी.जी. (ECG) में भी सीधी लकीर का अर्थ- मृत माना जाता है.
उन्होंने हमेशा जीवन में आगे बढ़ना ही सिखा. कभी वे अपनी परिस्थितियों से नही घबराये, जबकि हर कदम पर उन्होंने अपनेआप को सही साबित किया.
Saturday, July 15, 2017
अमरनाथ मंदिर गुफा का इतिहास – Lord Amarnath temple history in Hindi
अमरनाथ मंदिर गुफा का इतिहास – Lord Amarnath temple history in Hindi
Amarnath temple – अमरनाथ गुफा एक हिन्दू तीर्थ स्थान है जो भारत के जम्मू कश्मीर में स्थित है। अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हिन्दू धर्म में इस तीर्थ स्थान का काफी महत्त्व है और हिन्दुओ में Amarnath तीर्थ स्थान को सबसे पवित्र भी माना जाता है।
अमरनाथ मंदिर गुफा का इतिहास – Lord Amarnath temple history in Hindi
इस गुफा के चारो तरफ बर्फीली पहाड़ियाँ है। बल्कि यह गुफा भी ज्यादातर समय पूरी तरह से बर्फ से ढंकी हुई होती है और साल में एक बार इस गुफा को श्रद्धालुओ के लिये खोला भी जाता है। हजारो लोग रोज़ अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिये आते है और गुफा के अंदर बनी बाबा बर्फानी को मूर्ति को देखने हर साल लोगो भारी मात्रा में आते है।
इतिहास में इस बात का भी जिक्र किया जाता है की, महान शासक आर्यराजा कश्मीर में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा करते थे। रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है। कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, बनालिंग और दुसरे पवित चिन्हों को मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे। अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुवात प्रजाभट्ट द्वारा की गयी थी। इसके साथ-साथ इतिहास में इस गुफा को लेकर कयी दुसरे कथाए भी मौजूद है।
पवित्र गुफा की खोज – Baba Barfani Gufa Amarnath temple
कहा जाता है की मध्य कालीन समय के बाद, 15 वी शताब्दी में दोबारा धर्मगुरूओ द्वारा इसे खोजने से पहले लोग इस गुफा को भूलने लगे थे।
इस गुफा से संबंधित एक और कहानी भृगु मुनि की है। बहुत समय पहले, कहा जाता था की कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कुई नदियों का बहाव किया था। इसीलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे। इसके बाद जब लोगो ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा और अब हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान अमरनाथ के दर्शन के लिये आते है।
लिंग – Amarnath temple
40 मीटर ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है। हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है। यह गुफा मई से अगस्त तक मोम की बनी हुई होती है क्योकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमें देखने को मिलती है। इन महीने के दरमियाँ ही शिवलिंग का आकर दिन ब दिन कम होते जाता है। कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है। लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।
हिन्दू महात्माओ के अनुसार, यह वही गुफा है जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के महत्त्व के बारे में समझाया था। दूसरी मान्यताओ के अनुसार बर्फ से बना हुआ पत्थर पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का का प्रतिनिधित्व करता है।
इस गुफा का मुख्य वार्षिक तीर्थस्थान बर्फ से बनने वाली शिवलिंग की जगह ही है।
अमरनाथ गुफा के लिए रास्ता –
राज्य यातायात परिवहन निगम और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर रोज़ जम्मू से पहलगाम और बालताल तक की यात्रा सेवा प्रदान करते है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से प्राइवेट टैक्सी भी हम कर सकते है।
उत्तरी रास्ता तक़रीबन 16 किलोमीटर लंबा है लेकिन इस रास्ते पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है। यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और डोमिअल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है। उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावाथी नदी भी देखने को मिलती है जो अमरनाथ ग्लेशियर से जुडी हुई है।
कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे। चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था। महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था। और इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ना वहाँ तांडव नृत्य किया था। और अंत में भगवान देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।
अमरनाथ गुफा यात्रा – Amarnath Yatra details
हिन्दुओ के लिये यहाँ भगवान अमरनाथ बाबा का मंदिर प्रसिद्ध और पवित्र यात्रा का स्थान है। कहा जाता है की 2011 में तक़रीबन 635, 000 लोग यहाँ आये थे, और यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है। यही संख्या 2012 में 625,000 और 2013 में 3,50,000 थी। श्रद्धालु हर साल भगवान अमरनाथ के 45 दिन के उत्सव के बीच उन्हें देखने और दर्शन करने के लिये पहुचते है। ज्यादातर श्रद्धालु जुलाई और अगस्त के महीने में श्रावणी मेले के दरमियाँ ही आते है, इसी दरमियाँ हिन्दुओ का सबसे पवित्र श्रावण महिना भी आता है।
अमरनाथ की यात्रा जब शुरू होती है तब इसे भगवान श्री अमरनाथजी का प्रथम पूजन भी कहा जाता है।
पुराने समय में गुफा की तरफ जाने का रास्ता रावलपिंडी (पकिस्तान) से होकर गुजरता था लेकिन अब हम सीधे ट्रेन से जम्मू जा सकते है, जम्मू को भारत का विंटर कैपिटल (ठण्ड की राजधानी) भी कहा जाता है। इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है। ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके। लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है। जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस सेवा भी उपलब्ध है। पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है। वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है। इसीके साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है। कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन।
अमरनाथ यात्रा आयोजक –
अधिकारिक तौर पे, यात्रा का आयोजन राज्य सरकार श्री अमरनाथ यात्रा बोर्ड के साथ मिलकर करती है। सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान लगने वाली सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमे कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल है।
अमरनाथ हिंदी के दो शब्द “अमर” मतलब “अनश्वर” और “नाथ” मतलब “भगवान” को जोड़ने से बनता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे। तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाये और यही भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
सुरक्षा –
हर साल हजारो सेंट्रल और राज्य सरकार के पुलिस कर्मी श्रद्धालुओ की सुरक्षा में तैनात रहते है। जगह-जगह पर सेनाओ के कैंप भी लगे हुए होते है।
अवश्य जाएँ
अमरनाथ हिन्दी के दो शब्द “अमर” अर्थात “अनश्वर” और “नाथ” अर्थात “भगवान” को जोडने से बनता है। एक पौराणिक कथा अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिए कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे। तो, यह रहस्य बताने के लिए भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाए, और यहीं भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया।
गुफा के रास्ते में बहुत सी समाजसेवी संस्थाए श्रद्दालुओ को खाना, आराम करने के लिये टेंट या पंडाल की व्यवस्था करते है। यात्रा के रास्ते में 100 से भी ज्यादा पंडाल लगाये जाते है, जिन्हें हम रात में रुकने के लिये किराये पर भी ले सकते है। निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी दी जाती है।