Sunday, July 23, 2017

Somnath Temple History In Hindi | सोमनाथ मंदिर का इतिहास

 Somnath Temple History In Hindi | सोमनाथ मंदिर का इतिहास


सोमनाथ मंदिर / Somnath Temple भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है| भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है| यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और दर्शनीय स्थल है| बहोत सी प्राचीन कथाओ के आधार पर इस स्थान को बहोत पवित्र माना जाता है| सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है|

सोमनाथ मंदिर शाश्वत तीर्थस्थान के नाम से जाना जाता है| पिछली बार नवंबर 1947 में इसकी मरम्मत करवाई गयी थी, उस समय वल्लभभाई पटेल जूनागढ़ दौरे पर आये थे तभी इसकी मरम्मत का निर्णय लिया गया था| पटेल की मृत्यु के बाद कनैयालाल मानकलाल मुंशी के हाथो इसकी मरम्मत का कार्य पूरा किया गया था, जो उस समय भारत सरकार के ही मंत्री थे|
यह मंदिर रोज़ सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है| यहाँ रोज़ तीन आरतियाँ होती है, सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और श्याम 7 बजे| कहा जाता है की इसी मंदिर के पास भालका नाम की जगह है जहा भगवान क्रिष्ण ने धरती पर अपनी लीला समाप्त की थी|
ज्योतिर्लिंग / Jyotirlinga
सोमनाथ में पाये जाने वाले शिवलिंग को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है| इस शिवलिंग के यहाँ स्थापित होने की बहोत सी पौराणिक कथाएँ है| इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वही की गयी है जहाँ भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे| वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंग को माना जाता है लेकिन इनमे से 12 ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है|
शिवजी के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ में है और बाकि वाराणसी, रामेश्वरम, द्वारका इत्यादि जगहों पर है|
इतिहास / History
प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थस्थान रहा है, त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आये है|
कहा जाता है की चंद्र भगवान सोम ने यहाँ अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यही सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था| परिणामस्वरूप चन्द्रमा का वर्धन होता गया और वो घटता गया| इसके शहर प्रभास का अर्थ रौनक से है और साथ ही प्राचीन परम्पराओ के अनुसार इसे सोमेश्वर और सोमनाथ नाम से भी जाना जाता है|
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सोमनाथ मंदिर का इतिहास / Somnath Temple History
जे.गॉर्डोन मेल्टन के पारंपरिक दस्तावेजो के अनुसार सोमनाथ में बने पहले शिव मंदिर को बहोत ही पुराने समय में बनाया गया था| और दूसरे मंदिर को वल्लभी के राजा ने 649 CE में बनाया था| कहा जाता है की सिंध के अरब गवर्नर अल-जुनैद ने 725 CE में इसका विनाश किया था| इसके बाद 815 CE में गुर्जर-प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया था, इसे लाल पत्थरो से बनवाया गया था|
लेकिन अल-जुनैद द्वारा सोमनाथ पर किये गए आक्रमण का कोई इतिहासिक गवाह नही है| जबकि नागभट्ट द्वितीय जरूर इस तीर्थस्थान के दर्शन करने सौराष्ट्र आये थे| कहा जाता है की सोलंकी राजा मूलराज ने 997 CE में पहले मंदिर का निर्माण करवाया होंगा| जबकि कुछ इतिहासकारो का कहना है की सोलंकी राज मूलराज ने कुछ पुराने मंदिरो का पुनर्निर्माण करवाया था|
कहा जाता है की कई बार शासको ने इसे क्षति भी पहोचाई थी लेकिन फिर कुछ राजाओ ने मिलकर इस इतिहासिक पवित्र स्थान की मरम्मत भी करवाई थी|
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया| मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया| इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्माने इसे राष्ट्र को समर्पित किया| 1948 में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था| इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी|
यह जूनागढ रियासत का मुख्य नगर था| लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया| मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा| मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है| उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है| मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है| सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है|
सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है| यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है| चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है| इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है| इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है| इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है|

सोमनाथ मंदिर की रोचक बाते – Interesting Facts about Somnath Temple
1. 1665 में मुग़ल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया था| लेकिन बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था| बाद में पुणे के पेशवा, नागपुर के राजा भोसले, कोल्हापुर के छत्रपति भोंसले, रानी अहिल्याबाई होलकर और ग्वालियर के श्रीमंत पाटिलबूआ शिंदे के सामूहिक सहयोग से 1783 में इस मंदिर की मरम्मत की गयी थी|
2. 1296 में अलाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने मंदिर को क्षतिग्रस्त कर गिरा दिया था| लेकिन अंत में गुजरात के राजा करण ने इसका बचाव किया था|
3. 1024 में मंदिर को अफगान शासक ने क्षति पहोचकर गिरा दिया था| लेकिन फिर परमार राजा भोज और सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 से 1042 के बिच इसका पुनर्निर्माण किया था| कहा जाता है को लकडियो की सहायता से उनकी मंदिर का पुनर्निर्माण किया था लेकिन बाद में कुमारपाल ने इसे बदलकर पत्थरो का बनवाया था|
4. मंदिर की चोटी पर 37 फ़ीट लंबा एक खम्बा है जो दिन में तीन बार बदलता है| वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1950 में शुरू हुआ था| मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठान का कार्य भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने किया था|
5. सोमनाथ मंदिर आज देश में चर्चा का विषय बन चूका है| अब जो हिन्दू धर्म के लोग नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिये विशेष परमिशन लेनी होगी| अब तक मिली कंकरी के अनुसार जो हिन्दू नही है उन्हें मंदिर में जाने के लिए ट्रस्ट को मान्य कारण बताना होगा|

कच्छ का रण
कच्छ का रन तथा महान कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह लगभग 23,300 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूचाल के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभड़ आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है। सिकंदर महान्‌ के समय यह नौगम्य झील था। उत्तरी रन, जो लगभग 257 कि॰मी॰ में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,178 वर्ग कि॰मी॰ है। मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है। सन्‌ 1819 ई. के भूकंप में उत्तरी रन का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं।


नाम "रण" हिन्दी शब्द से आता है (रण) अर्थ "रेगिस्तान" है।

कच्छ के रन की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है। 9 अप्रैल 1965 को पाकिस्तान ने अचानक आक्रमण करके इसके एक भाग पर कब्जा कर लिया। भारतीय सैनिकों ने अपना क्षेत्र वापस लेने के लिए कार्रवाई की तो युद्ध छिड़ गया। लेकिन ब्रिटेनके हस्तक्षेप से युद्ध विराम हुआ और मामला फैसले के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय (19 फ़रवरी 1968) के अनुसार कच्छ के रन का लगभग एक तिहाई भाग पाकिस्तान को वापस मिल गया।









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