Tanaji history in hindi | तानाजी का इतिहास
तानाजी मालुसरे फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन भी कर रही है। फिल्म को लेकर इतिहासकारों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है लेकिन बावजूद इसके फिल्म का कलेक्शन लगातार बढ़ता हुआ ही दिख रहा है। करीब 4000 हजार स्क्रीन्स पर रिलीज हुई इस फिल्म में अजय देवगन छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति सूबेदार और घनिष्ठ मित्र तानाजी मालुसरे (Subedar Tanaji Malusare) के किरदार में नजर आ रहे हैं।
ओम राउत द्वारा निर्देशित यह फिल्म 17 वीं शताब्दी के मराठा योद्धा और छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति सूबेदार तानाजी मालुसरे की कहानी पर आधारित है। मालुसरे को खासतौर पर कोंधाना किला (सिंहगढ़) (1670) का किला फतह करने के लिए जाना जाता है। तानाजी ने शिवाजी के आदेश पर मुगलों के खिलाफ सिंहगढ़ का युद्ध लड़ा और इस किले पर फतह हासिल की लेकिन ये करते करते उनकी मौत हो गई। रणनीतिक रूप से यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण किला था। जिसपर मुगल अपना अधिपत्य चाहते थे। तानाजी मालुसरे का जन्म 1600 ईस्वी में गोडोली, जवाली तालुका, सतारा जिला, महाराष्ट्र में हुआ था।
जानिए क्या थी सिंहगढ़ की लड़ाई और तानाजी मालुसरे को क्यों याद किया जाता है?
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। शिवाजी के पास बड़ी संख्या में किले थे जिनकी मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे। लेकिन धीरे धीरे मुगलों ने करीब 23 किले अपने अधीन कर लिए। पुरंदर के किले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से 22 जून 1665 ई. में पुरंदर की संधि की। जिस कारण शिवाजी महाराज को कोंधाना किला मुगलों को देना पड़ा। यह किला 1665 में राजपूत कमांडर जय सिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगलों के अधीन आ गया। शिवाजी अपने इस किले को वापस पाना चाहते थे।
1665 की संधि के बाद जब शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गए तो वहां धोखे से उन्हें बंदी बना लिया गया जैसे तैसे शिवाजी आगरा से निकलकर महाराष्ट्र पहुंचे और उन्होंने पुंरदर संधि को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ मुगलों के अधीन हुए किलों को फतह करने का सिलसिला। क्योंकि किला मराठाओं के लिए सम्मान की बात थी। खास तौर पर ये किला इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि कहा जाता था कि ये किला जिस किसी के पास भी होगा उसका 'पूना' पर अधिकार होगा।
ऐसे में शिवाजी महाराज ने अपने घनिष्ठ मित्र और सेनापति तानाजी मालुसरे को इसे फतह करने के लिए भेजा। 70,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस किले का एक द्वार पुणे और दूसरा द्वार कल्याण की ओर खुलता है। तानाजी अपने भाई सूर्या जी को साथ लेकर करीब 300 सेना के साथ इस किले को फतह करने चल दिए। किले की दीवार इतनी सीधी सपाट थी कि उसपर आसानी से चढ़ना संभव नहीं था। इतना ही नहीं इस किले की रक्षा करने के लिए किले में करीब 5000 मुगल सेना तैनात की गई थी।
किले के नीचे पहुंचने के बाद तानाजी योजना के तहत रस्सी की मदद से इस किले में दाखिल होने में सफल हुए। बारी-बारी से तानाजी की पूरी सेना इस किले में दाखिल हो गई और युद्ध छिड़ गया। इस बीच उदयभान राठौड़ (किले की रखवाली करने वाले राजपूत सेनापति) को जब इसका पता चला तो उन्होंने तानाजी पर हमला किया। इस हमले में तानाजी की ढाल टूट गई। लड़ाई में तानाजी, उदयभान द्वारा मारे गए और वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन अंत में मराठाओं ने इस किले पर फतह हासिल की और मराठा ध्वज फहरा दिया गया।
किले पर फतह हासिल करने के बावजूद शिवाजी महाराज को अपने प्रिय सेनापति को खोने का दुख उम्रभर रहा। तानाजी की मृत्यु की खबर सुन शिवाजी ने कहा था- 'गढ़ आला, पन सिंह गेला' यानी किला तो जीत लिया लेकिन अपना शेर खो दिया। शिवाजी तानाजी को शेर कहा करते थे।
तानाजी मालुसरे (अंग्रेज़ी: Tanaji Malusare) शिवाजी महाराज के सेनापति थे, जो अपनी वीरता के कारण सिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। शिवाजी उनको सिंह ही कहा करते थे। 1670 ई. में कोढाणा क़िले (सिंहगढ़) को जीतने में तानाजी ने वीरगति पायी थी। जब शिवाजी सिंहगढ़ को जीतने निकले थे, तब तानाजी अपने पुत्र के विवाह में व्यस्त थे, किन्तु शिवाजी महाराज का समाचार मिलते ही वह विवाह आदि छोड़ कर युद्ध में चले गये थे।
वीर निष्ठावान सरदार
तानाजी मालुसरे शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान सरदार थे। उनके पुत्र के विवाह की तैयारी हो रही थी। चारों ओर उल्लास का वातावरण था। तभी शिवाजी महाराज का संदेश उन्हें मिला- "माता जीजाबाई ने प्रतिज्ञा की है कि जब तक कोण्डाणा दुर्ग पर मुसलमानों के हरे झंडे को हटा कर भगवा ध्वज नहीं फहराया जाता, तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी। तुम्हें सेना लेकर इस दुर्ग पर आक्रमण करना है और अपने अधिकार में लेकर भगवा ध्वज फहराना है।"
स्वामी का संदेश पाकर तानाजी ने सबको आदेश दिया- विवाह के बाजे बजाना बन्द करो, युद्ध के बाजे बजाओ।" अनेक लोगों ने तानाजी से कहा- "अरे, पुत्र का विवाह तो हो जाने दो, फिर शिवाजी महाराज के आदेश का पालन कर लेना।" परन्तु, तानाजी ने ऊँची आवाज में कहा- "नहीं, पहले कोण्डाणा दुर्ग का विवाह होगा, बाद में पुत्र का विवाह। यदि मैं जीवित रहा तो युद्ध से लौटकर विवाह का प्रबंध करूँगा। यदि मैं युद्ध में काम आया तो शिवाजी महाराज हमारे पुत्र का विवाह करेंगे।" बस, युद्ध निश्चित हो गया।
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