गुलाबी नगर जयपुर
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जयपुर के पर्यटन स्थल
जयपुर के मंदिर
जयपुर से दूर विशेष स्थान
निर्माण और व्यवसाय
मेले एवं पर्व
जयपुर की चित्रकला
जयपुर के तेल डिपो लगी आग
जयपुर में 8 बम विस्फोट
जयपुर का Google map
जयपुर के पर्यटन स्थल
जयपुर के मंदिर
जयपुर से दूर विशेष स्थान
निर्माण और व्यवसाय
मेले एवं पर्व
जयपुर की चित्रकला
जयपुर के तेल डिपो लगी आग
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत के गुलाबी नगर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर अपने बेजोड़ नगर नियोजन के लिए विश्वविख्यात है | इस शहर की स्थापना कछवाहा वंश के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18 नवम्बर, 1727 में की थी | इसके पूर्व कछवाहों की राजधानी आमेर थी | जयपुर अपने उत्कृष्ट वास्तुशिल्प एवं कलात्मक वैभव के लिए जाना जाता है | इसकी सुंदरता की तुलना पेरिस से, आकर्षण की तुलना बुडापेस्ट से तथा भव्यता की तुलना मास्को से की जाती है | जयपुर का निर्माण ज्योतिष और वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर किया गया |
इस शहर का वास्तुनियोजन पं. विद्याधर भट्ट ने किया था | उन्होंने शहर को नौ वर्गों के सिद्धान्त के आधार पर बसाने का फैसला किया | जयपुर के राजमार्ग ज्यामितिक सूत्रों और गणितीय सिद्धान्तों को ध्यान में रख कर बनाए गए | इन राजमार्गो के संगम एक नाम और आकार के चौराहों या चौपाड़ों पर होते हैं, जिनके बीच में फव्वारे लगे हुए हैं जो इन चौराहों को अनोखी सुन्दरता प्रदान करते हैं | शहर की मुख्य सड़क 108 फीट चौड़ी व अन्य सडकें 54' 26',13'-6" फीट चौड़ी हैं | इसी प्रकार सडक के दोनों ओर दुकानें भी निश्चित चौड़ाई की हैं , जिन पर पुता हुआ गाढ़ा गुलाबी रंग सारे नगर को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय एक अनुपम गुलाबी आभा से भर देता है | जयपुर अपनी खुबसुरती एवं सुन्दर नियोजन के कारण ही अपने निर्माण से पर्यटकों का पसंदीदा शहर बन गया | इसीलिए तो एक प्रमुख ब्रिटिश वास्तुविद् सर ह्यूज कासन ने पीकिंग और वेनिस के साथ जयपुर को विश्व के तीन सबसे सुंदर नगरों में स्थान दिया | यह नगर अनोखी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को अपने में संजोए आधुनिकता का भी बेमीसाल नमूना हैं |
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जयपुर के पर्यटन स्थल
हवामहल
जयपुर शहर के बीचों-बीच स्थित पचास फीट ऊंचे और एक फुट से भी कम चौडे हवामहल की निराली भव्य छवि के कारण यह जयपुर के व्यक्तिव और उसकी सुन्दरता का पर्याय बन गया है | इस भव्य, कलात्मक व सुन्दरता से परिपूर्ण भवन का निर्माण महाराजा प्रतापसिंह ने 1799 ई. में करवाया था | यह महल राधा व कृष्ण को समर्पित हैं | पांच मंजिलों वाला गोल व आगे निकले झरोखे एवं खिड़कियों की एकरुपता युक्त पिरामिड सदृश्य हवामहल भारत में स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण है | इस महल का निर्माणइस प्रकार किया गया है कि इनकी खिड़कियों से लगातार तेज हवा आती रहती है | इस भवन के बारे में खास बात यह है कि छोट-छोटे जाली झरोखों वाली उन्नत दीवार से आठ इंच चौडी है, जिस पर पूरी पांच मंजिले खड़ी होना निर्माणकला की अपनी विशिष्टता है|
जन्तर-मन्तर
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जन्तर-मन्तर
जन्तर-मन्तर का निर्माण जयपुर शहर की स्थापना के समय 1734 में कराया गया था | सवाई जयसिंह द्वारा बनाईगई इस वेधशाला का अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व है | इसका निर्माण समय की जानकारी प्राप्त करने के लिए कराया गया था | देश में सबसे पहली वेधशाला दिल्ली में 1724 में बनवाई गई और उसके दस वर्ष बाद जयपुर में वेधशाला बनाई गई थी | जयपुर की वेधशाला सबसे विशाल और विख्यात है | इस वेधशाला में स्वयं जयसिंह द्वारा निर्मित आविष्कृत तीन यंत्र -सम्राट, जयप्रकाश और रामयंत्र प्रमुख हैं, जिनकी सामान्य शुद्धता आधुनिक वैज्ञानिकों को भी विस्मित करती है|
जलमहल
जलमहल
जयपुर-आमेर मार्ग पर जलमहल का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था | ईश्वर विलास महाकाव्य और दस्तूर कौमवार की सूचनानुसार सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति के लिए गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर तालाब बनवाया था | कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी जलमहल में कराई थी| जलमहल मध्यकालीन महलों की भांति मेहराबों, बुर्जों, छतरियों तथा सीढ़ीदार जीनों से बना दो मंजिला और वर्गाकार रुप में निर्मित है| इसकी ऊपरी मंजिल के चारों कोनों पर बुर्जों की छतरियां व बीच की बारादरियां संगमरमर के अठपहलू स्तम्भों पर आधारित है|
रामनिवास बाग
जयपुर-आमेर मार्ग पर जलमहल का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था | ईश्वर विलास महाकाव्य और दस्तूर कौमवार की सूचनानुसार सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति के लिए गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर तालाब बनवाया था | कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी जलमहल में कराई थी | जलमहल मध्यकालीन महलों की भांति मेहराबों, बुर्जों, छतरियों तथा सीढ़ीदार जीनों से बना दो मंजिला और वर्गाकार रुप में निर्मित है | इसकी ऊपरी मंजिल के चारों कोनों पर बुर्जों की छतरियां व बीच की बारादरियां संगमरमर के अठपहलू स्तम्भों पर आधारित है|
जयपुर-आमेर मार्ग पर जलमहल का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था | ईश्वर विलास महाकाव्य और दस्तूर कौमवार की सूचनानुसार सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति के लिए गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर तालाब बनवाया था | कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के भोजन व विश्राम की व्यवस्था इसी जलमहल में कराई थी | जलमहल मध्यकालीन महलों की भांति मेहराबों, बुर्जों, छतरियों तथा सीढ़ीदार जीनों से बना दो मंजिला और वर्गाकार रुप में निर्मित है | इसकी ऊपरी मंजिल के चारों कोनों पर बुर्जों की छतरियां व बीच की बारादरियां संगमरमर के अठपहलू स्तम्भों पर आधारित है|
रामनिवास बाग
अजमेरी गेट से सांगानेरी गेट तक फैला रामनिवास बाग परकोटे से बाहर एक महत्त्वपूर्ण स्थल है | इसमें अजायबघर, जन्तुशाला, अल्बर्ट हाल है | रामनिवास बाग के लिए कहा जाता है कि इसका निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत 4 लाख रुपये की लागत से महाराजा सवाई रामसिंह ने कराया था|
अजमेरी गेट से सांगानेरी गेट तक फैला रामनिवास बाग परकोटे से बाहर एक महत्त्वपूर्ण स्थल है | इसमें अजायबघर, जन्तुशाला, अल्बर्ट हाल है | रामनिवास बाग के लिए कहा जाता है कि इसका निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत 4 लाख रुपये की लागत से महाराजा सवाई रामसिंह ने कराया था|
अल्बर्ट हाल
अल्बर्ट हाल
शहर की ह्रदय स्थली रामनिवास बाग के मध्य स्थित भारतीय व पारसी शैलीमें बनी यह इमारत शहर का प्रमुख पर्यटक स्थल है | प्रिन्स आव अल्बर्ट के आगमन व सम्मान में निर्मित इस भवन की आधारशिला 6 फरवरी, 1876 ई. को प्रिंस अल्बर्ट ने रखी व 21 फरवरी, 1887 ई. को तत्कालीन भारतीय गवर्नर जनरल के एजेन्ट सर एडवर्ड ब्रेडफर्ड ने उद् घाटन किया | वर्तमान में इस भवन को म्यूजियम का रुप दे दिया गया है | अल्बर्ट हाल ;देश की एकमात्र ऐसी इमारत है, जिसमें कई देशों की स्थापत्य शैली का समावेश देखने को मिलता है | इस इमारत में भारतीय व फारसी शैली के अलावा मुगल, बोरोक, बुद्धिस्ट, रिनेसा व गोथिक की स्थापत्य शैली का मिश्रण है | इमारत के वास्तुकार कर्नल एस. जैकब ने दुनिया के म्यूजियमों की जानकारी लेकर बनवाया था | इस भवन में प्रवेश करते हुए एक हाल है जिसमें जयपुर के राजाओं के चित्र व राजचिन्ह हैं | चारों तरफ भारतीय व विदेशी कला के नमूनों की प्रतिकृतियां व भित्ति चित्र हैं |
गैटोर
नाहरगढ़ किले की तलहटी में जयपुर के दिवंगत राजाओं की छतरियां निर्मित हैं, इस स्थान को गैटोर कहते हैं | सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के केनसिंगल म्यूजियम में रखी गई है
नाहरगढ़ किले की तलहटी में जयपुर के दिवंगत राजाओं की छतरियां निर्मित हैं, इस स्थान को गैटोर कहते हैं | सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के केनसिंगल म्यूजियम में रखी गई है
शहर की पूर्वी पहाड़ियों के बीच स्थित गलता एक प्रमुख तीर्थ स्थल है | गलता कुण्ड में निरंतर गौमुख से पानी बहता रहता है | यहां इस पहाड़ी की एक चोटी पर सूर्य का प्रसिद्ध मंदिर है | इस धार्मिक स्थल में अनेक स्नानागार हैं | ऐसी मान्यता है कि यह गालव ऋषि की तपोस्थली रहा है|
सिसोदिया रानी का महल एवं बाग
सवाई जयसिंह [द्वितीय] की महारानी सिसोदियाजी ने सन् 1779 में इसका निर्माण कराया था | इस बाग में फव्वारे लगे हुए हैं तथा इसके ऊपरी भाग में महल बना हुआ है |
सवाई जयसिंह [द्वितीय] की महारानी सिसोदियाजी ने सन् 1779 में इसका निर्माण कराया था | इस बाग में फव्वारे लगे हुए हैं तथा इसके ऊपरी भाग में महल बना हुआ है |
विद्याधर का बाग
जयपुर के मुख्य वास्तुविद् एवं नगर नियोजक के नाम से बनाया गया यह बाग, चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं | इसमें फव्वारे और कुण्ड हैं|
जयपुर के मुख्य वास्तुविद् एवं नगर नियोजक के नाम से बनाया गया यह बाग, चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं | इसमें फव्वारे और कुण्ड हैं|
जयपुर के मंदिरजयपुर में कई बड़े-बड़े मंदिर हैं | इनमें गोविन्द देवजी का मंदिर, नहर के गणेशजी, मोती डूंगरी गणेशजी का मंदिर, ताड़केश्वरजी का मंदिर,राम मंदिर, लक्ष्मी नारायणजी का मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे, जामा मस्जिद हैं| सांगानेर में 11 वीं शताब्दी के संघीजी का प्रसिद्ध जैन मंदिर है, जो संगमरमर की शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है | इसे माउण्ट आबू स्थित दिलवाड़ा मंदिर के बाद दूसरा स्थान दिया जाता है | जयपुर से दूर विशेष स्थान
सांगानेर जयपुर के दक्षिण में 13 किलोमीटर दूर पंचायत समिति मुख्यालय सांगानेर कागज निर्माण के लिए प्रसिद्ध है |
जमवारामगढ़ जयपुर से 26 किलोमीटर दूर पूर्व की ओर जमवारामगढ़ बांध है, जो पिकनिक की दृष्टि से उपयोगी स्थल है | जयपुर शहर को इस बांध से पीने का पानी सप्लाई किया जाता है | इस झील का कुल क्षेत्रफल 16 वर्ग किलोमीटर है | सांभर जयपुर से 94 किलोमीटर दूर सांभर उत्तरी भारत के चौहान राजाओं की प्रथम राजधानी थी | यहां की झील से तैयार नमक निर्यात किया जाता है | बैराठ जयपुर-शाहपुरा-अलवर मार्ग पर स्थित बैराठ के लिए कहा जाता है कि यहां पाण्डवों ने अपना निर्वासित जीवन व्यतीत किया था | यहां आज भी ऐसे स्थल हैं, जो पुरानी यादों को ताजा कराते हैं | आमेर जयपुर से 11 किलोमीटर दूर आमेर में स्थित आमेर के किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानिंसह ने करवाया था। हिंदू ओर मुगल आर्टिकेट का बेजोड़ नमूने इस किले को राजपूत राजा 16वीं शताब्दी से 1727 तक प्रयोग करते थे। |
जयपुर जिला लाख एवं हाथी दांत का काम, सांगानेरी एवं बगरु की छपाई, पीतल की नक्काशी, ब्लु पाटरी, रत्न व्यवसाय, संगमरमर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं |
जवाहरात: जवाहरात के निर्माण और व्यवसाय में जयपुर का नाम विश्व प्रसिद्ध है | यहां की नगीनाकारी का काम भी प्रसिद्ध है | पीतल की नक्काशी, मीनाकारी के लिए भी यह शहर प्रसिद्ध है | यहां सगमरमर की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं, जिनका देश-विदेश में निर्यात होता है | चंदन की लकड़ी के खिलौने और ब्ल्यू पाटरी के लिए भी जयपुर मशहूर है |
जवाहरात: जवाहरात के निर्माण और व्यवसाय में जयपुर का नाम विश्व प्रसिद्ध है | यहां की नगीनाकारी का काम भी प्रसिद्ध है | पीतल की नक्काशी, मीनाकारी के लिए भी यह शहर प्रसिद्ध है | यहां सगमरमर की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं, जिनका देश-विदेश में निर्यात होता है | चंदन की लकड़ी के खिलौने और ब्ल्यू पाटरी के लिए भी जयपुर मशहूर है |
मेले एवं पर्व
तीज, गणगौर, शीतलाष्टमी |
जयपुर की चित्रकला
जयपुर की चित्रकला अपना एक विशेष स्थान रखती है | यहां के भवनों, मंदिरों, राजभवनों पर पाए जाने वाले भित्ति चित्रों की अपनी अलग शैली है | जो जयपुर शैली के नाम से जानी जाती है | इन चित्रों में हरे रंग का ज्यादा उपयोग होता है | चित्रों में पीपल, बड़, घोड़ा और मोर का अधिक चित्रण किया जाता है | अधिकांश चित्र रागमाला, बारहमासा, कृष्ण चरित्र एवं नायिका भेद के होते हैं |
जयपुर. आईओसी के तेल डिपो के टैंकरों में October 31, 2009 लगी आग से दस करोड़ लीटर (एक लाख किलोलीटर) तेल धुआं बनकर जल रहा है। इसकी कीमत अनुमानत: 700 करोड़ रुपए है। इस डिपो में छोटे-बड़े 12 टैंक हैं। आईओसी के जनरल मैनेजर गौतम बोस ने बताया कि ऐसी आग उन्होंने पिछले तीस सालों में भी नहीं देखी।
जयपुर में 8 बम विस्फोट
राजस्थान की राजधानी जयपुर में मंगलवार, 13 May शाम को सिलसिलेवार हुए 8 बम धमाकों में विस्फोटक पदार्थ आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। लगभग 20 मिनटों के अंतराल पर पुराने जयपुर शहर के जौहरी बाज़ार, त्रिपोलिया बाज़ार, बड़ी चौपाल, छोटी चौपाल, मानस चौक, चाँद पोल और कोतवाली के पास हुए धमाकों ने इस शांत शहर को दहला कर रख दिया. इन धमाकों में 63 लोग मारे गए हैं और 200 से ज़्यादा घायल हुए हैं.
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